दुनिया के सबसे शक्तिशाली मुल्क के राष्ट्रपति चुनाव में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार अपने-अपने रनिंग मेट्स क्यों चुनते हैं.

अमेरिका का चुनाव काफी पेचीदगी भरा माना जाता है. यहां का राष्ट्रपति चुनाव भारतीय चुनावों से काफी अलग होता है. अमेरिका में एक तरफ जहां कोरोना वायरस तबाही मचा रहा है, वहीं राष्ट्रपति चुनाव की धमक भी पूरी दुनिया में सुनाई देने लगी है. कोरोना वायरस ने भले ही पूरी दुनिया की स्पीड पर ब्रेक लगी दी हो लेकिन अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव समय से ही हो रहे हैं. विश्व युद्ध के दौरान भी अमेरिका में चुनाव नहीं टले थे.
कोरोना काल में आगामी चुनाव खास है. डेमोक्रेटिक पार्टी की तरफ से लिए गए एक फैसले ने चुनावी सरगर्मियों को और बढ़ा दिया है. राष्ट्रपति चुनाव में डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बिडेन ने भारतीय मूल की कमला हैरिस को अपना रनिंग मेट बनाया है.
जो बिडेन ने कमला हैरिस को अपना रनिंग मेट चुना है. ऐसे में ये समझना भी जरूरी है कि रनिंग मेट क्या होता है. राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार रनिंग मेट क्यों चुनते हैं और एक ही टिकट पर रनिंग मेट क्यों उतारा जाता है.
जो बिडेन ने कमला हैरिस को चुना है जबकि डोनाल्ड ट्रंप ने उपराष्ट्रपति माइक पेंस को ही एक बार फिर अपना रनिंग मेट बनाया है. आसान भाषा में समझें तो जिस नेता या शख्स को रनिंग मेट चुना जाता है, वो उप-राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार होता या होती है. अमेरिका में दोनों बड़े दल रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार अपने-अपने रनिंग मेट्स चुनते हैं.
राष्ट्रपति के साथ ही उनके रनिंग मेट यानी उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए भी वोटिंग होती है. दोनों उम्मीदवारों के लिए वोटिंग होती है और दोनों एक टीम की तरह एक ही टिकट पर लड़ते हैं, जीत दर्ज करते हैं या हारते हैं. यानी अगर डेमोक्रेटिक पार्टी की सरकार अमेरिका में आती है तो जो बिडेन राष्ट्रपति बनेंगे, जबकि उनके साथ कमला हैरिस उपराष्ट्रपति बनेंगी. वहीं, ट्रंप के जीतने पर वो राष्ट्रपति और माइक पेंस उपराष्ट्रपति बनेंगे. अमेरिकी चुनाव में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार ही अपना रनिंग मेट चुनते हैं.
वॉशिंगटन स्थित अमेरिकन यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर क्रिस एडल्सन के हवाले से इंडियन एक्सप्रेस ने रनिंग मेट सिस्टम के बारे में विस्तार से लिखा है. क्रिस एडल्सन ने बताया है कि अमेरिकी राजनीति में वैसे रनिंग मेट सिस्टम को कभी भी औपचारिक तौर पर कानून में सम्मिलित नहीं किया गया था, लेकिन ये प्रथा 1864 से चली आ रही है.
मौजूदा सिस्टम में इसी तरह राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति दोनों के लिए वोटिंग की जाती है, लेकिन दोनों एक टीम के रूप में ही चुनाव लड़ते हैं.
मूल सिस्टम के तहत उपराष्ट्रपति भी राष्ट्रपति पद का ही उम्मीदवार होता था, जो इलेक्टोरल कॉलेज की वोटिंग में दूसरे नंबर पर आता था. लेकिन इस सिस्टम ने एक बार बड़ा विवाद पैदा कर दिया. जिसके बाद 1804 में यूएस संविधान में 12वें संशोधन के साथ नियम बदल गए. नए नियम में बताया गया कि इलेक्टोरल कॉलेज रनर अप की बजाय राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति को अलग-अलग चुनेंगे.