राष्ट्र आजकल प्रतिनिधि । तालिबान की वापसी से भारत को क्या नुकसान होंगे, इसे लेकर राजनयिक कयास जारी हैं। पर जमीनी हकीकत यह है कि अफगानिस्तान की जनता की लाइफ लाइन मानी जानी वाली भारत की आर्थिक सहायता पर तुरंत विराम लग गया है। विदेश मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार अफगानिस्तान में अनिश्चिय की स्थिति है और ऐसे में निर्माणाधीन परियोजनाओं के लिए कोई सहायता लेने वाला ही नहीं है। भारत ने अलग-अलग समय में अफगानिस्तान को 21,000 करोड़ रुपए आर्थिक विकास मदद देने का वादा किया था।
यह अब खटाई में पड़ गई है, क्योंकि अफगानिस्तान फिर से 1996 के आतंकी राज की ओर लौट गया है। अफगानी जनता के लिए गनीमत यह है कि 2020-21 के लिए तय 350 करोड़ रुपए की सहायता राशि में से 76% खर्च हो चुकी थी। इसके अलावा भारत ने 3450 करोड़ रुपए की परियोजनाएं पूरी कर अफगानिस्तान को साैंपी हैं। ये परियोजनाएं पाकिस्तान के इशारे पर तालिबान के निशाने पर आ सकती हैं।
भारत अफगानिस्तान के 34 प्रांतों में 13 बड़ी परियोजनाओं पर काम कर रहा था, जो 510 करोड़ की हैं। अब इन सभी पर ब्रेक लग गया है। काबुल के लोगों का सबसे बड़ा नुकसान शहतूत बांध परियोजना थमने से होने वाला है। इस पर भारत 700 करोड़ रुपए से अधिक खर्च करने जा रहा था। बांध से काबुल की जनता को निरंतर पानी की आपूर्ति सुनिश्चित होनी थी। भारत ने सामुदायिक विकास के कार्यक्रमों के लिए 1400 करोड़ रु की अलग से सहायता देने की घोषणा की थी।
तालिबान और पंजशीर नेताओं के बीच वार्ता बेकार हो गई है। तालिबान आयोग के प्रमुख मुल्ला आमिर खान मुताकी ने कहा कि हम चाहते थे कि पंजशीर का मसला बातचीत से हल करते। पर दुर्भाग्य से सब बेकार हो गया। जो लड़ना चाहते हैं, उन्हें पता होना चाहिए कि उसका अंजाम क्या होगा। इससे पहले, पंजशीर में तालिबान और नॉर्दन अलायंस के बीच मंगलवार रात जंग शुरू हो गई है। तालिबान ने गोलबहार से पंजशीर को जोड़ने वाले पुल को उड़ा दिया है। वहीं, नॉर्दन अलायंस ने दावा किया है कि जंग में 350 से ज्यादा तालिबानी मारे गए हैं।
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा कि अफगानिस्तान में अमेरिकी सैन्य हस्तक्षेप ने त्रासदी और हर तरफ जानमाल के नुकसान के अलावा कुछ भी हासिल नहीं किया है। इससे यह भी साबित हो गया है कि अन्य देशों पर विदेशी मूल्यों को थोपना असंभव है। अमेरिका बर्बादी छोड़ गया है।