राष्ट्र आजकल प्रतिनिधि । ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी और एकादशी बहुत खास होती हैं। ये दोनों तिथियां जल का महत्व बताती हैं। 9 जून को गंगा दशहरा और 10 जून को निर्जला एकादशी है।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक गंगा दशहरा पर गंगा नदी में स्नान करने और दान-पुण्य करने की परंपरा है। वराह पुराण के अनुसार ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि और हस्त नक्षत्र में स्वर्ग से गंगा नदी पृथ्वी पर प्रकट हुई थी।
मान्यता है कि गंगा नदी में स्नान करने से भक्तों के सारे पाप कर्म नष्ट हो जाते हैं। गंगा दशहरा का ये पर्व दस दिनों तक चलता है। ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से दशमी तक ये पर्व मनाया जाता है।
राजा भगीरथ ने अपने पितरों के उद्धार के लिए कठोर तप किया था और देवी गंगा से पृथ्वी पर आने का वर मांगा था। गंगा के प्रबल वेग को शिव जी ने अपनी जटाओं में धारण किया था। इसके बाद जटाओं से सात धाराओं में पृथ्वी पर गंगा को छोड़ा था। राजा भागीरथ के प्रयासों से गंगा आज भी भक्तों के पापों को धो रही है।
हमें भी राजा भागीरथ की तरह ही जल को बचाना चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ियों को जल प्राप्त हो सके। हमें जल का अपव्यय रोकना चाहिए।
निर्जला एकादशी व्रत बताता है एक-एक बूंद जल का मूल्य
निर्जला एकादशी पर भक्त पूरे दिन निर्जल रहते हैं यानी दिन भर अन्न और जल ग्रहण नहीं करते हैं। गर्मी के दिनों में पूरे दिन बिना पानी के रहने से हमें पानी की एक-एक बूंद का मूल्य मालूम होता है। ये पर्व हमें संदेश देता है कि हमें पानी का अपव्यय नहीं करना चाहिए और एक-एक बूंद पानी बचाना चाहिए। निर्जला एकादशी पर भगवान विष्णु के लिए व्रत उपवास किया जाता है।