राष्ट्र आजकल प्रतिनिधि । मंगलवार, 30 अगस्त को हरतालिका तीज है। भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि पर गणेश जी, देवी पार्वती, शिव जी की विशेष पूजा और व्रत किया जाता है। ये व्रत खासतौर पर मैरिड लाइफ में प्रेम बनाए रखने और पार्टनर के सौभाग्य की कामना से किया जाता है।
उज्जैन के एस्ट्रोलॉजर पं. मनीष शर्मा के मुताबिक जो महिलाएं हरतालिका व्रत करती हैं, वे दिनभर निराहार रहती हैं, कुछ महिलाएं पानी भी नहीं पीती हैं। इस दिन देवी पार्वती की पूजा, मंत्र जप ध्यान किया जाता है। तीज पर व्रत करने के बाद अगले दिन यानी चतुर्थी तिथि पर स्नान के बाद महिलाएं दान-पुण्य करती हैं। पूजा करती हैं और इसके बाद ही खाना खाती हैं, पानी पीती हैं।
ये है हरतालिका तीज की व्रत कथा
पर्वतराज हिमालय के यहां देवी पार्वती का जन्म हुआ था। जब पार्वती विवाह योग हुईं तो उन्होंने शिव जी को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था।
देवी पिछले जन्म में प्रजापति दक्ष के यहां सती माता के रूप में जन्मी थीं। सती और शिव जी का विवाह हुआ था। प्रजापति दक्ष शिव जी पसंद नहीं करता था और मौका मिलते ही वह शिव जी का अपमान कर देता था।
एक दिन देवी सती को मालूम हुआ कि उनके पिता दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया है, जिसमें सभी देवी-देवता और ऋषि-मुनियों को बुलाया गया है।
दक्ष ने शिव जी और देवी पार्वती को यज्ञ में नहीं बुलाया था। सती माता शिव जी से कहा कि हमें भी पिता जी के यहां यज्ञ में जाना चाहिए। तब शिव जी ने सती को समझाया कि बिना आमंत्रण हमें ऐसे आयोजन में नहीं जाना चाहिए।
शिव जी के समझाने के बाद भी सती माता ने तर्क दिया कि पिता के यहां जाने के लिए आमंत्रण की जरूरत नहीं होती है और दक्ष के यहां यज्ञ में चली गईं।
यज्ञ स्थल पर दक्ष ने सती के सामने ही शिव जी का अपमान किया तो देवी ये सहन नहीं कर सकीं। देवी सती ने वहीं यज्ञ कुंड में कूदकर अपने देह का अंत कर दिया। इसके बाद देवी मां पर्वतराज हिमालय और मैना के यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया।
देवी पार्वती ने शिव जी को पति रूप में पाने के लिए तपस्या की। ये तपस्या बहुत ही कठोर थी और लंबे समय तक चली। देवी मां ने एक गुफा में शिवलिंग बनाया और रोज पूजा करने लगीं।
भाद्रपद कृष्ण तृतीया पर शिव जी ने दिया था देवी पार्वती को वरदान
कठोर तप से प्रसन्न होकर शिव जी देवी पार्वती के सामने प्रकट हुए और उन्हें जीवन साथी के रूप में अपनाने का वरदान दिया। जिस दिन शिव जी ने पार्वती जी को वरदान दिया, उस दिन भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि ही थी।
तभी से कन्याएं अपने लिए श्रेष्ठ वर पाने की कामना से हरतालिका तीज का व्रत करती हैं। विवाहित महिलाएं सुखी वैवाहिक जीवन के लिए और पति के सौभाग्य के लिए ये व्रत करती हैं।