राष्ट्र आजकल प्रतिनिधि। केंद्र सरकार ने सरोगेसी (रेगुलेशन) रूल्स 2022 के नियम 7 में बदलाव किया है। इस बदलाव के बाद सरोगेसी के जरिए बच्चा चाहने वाला कोई भी विवाहित महिला या पुरुष, डोनर एग या स्पर्म के जरिए पेरेंट्स बन सकता है, लेकिन दोनों में से एक गेमेट ( शुक्राणु या अंडाणु) दंपती का ही होना चाहिए।
इसमें एक कंडीशन यह भी रखी गई है कि पति-पत्नी में से किसी एक के मेडिकली अनफिट होने की पुष्टि डिस्ट्रिक्ट मेडिकल बोर्ड करेगा। यह बदलाव सिंगल मदर के लिए भी खुशखबरी है। विधवा या तलाकशुदा महिला भी अपने एग के लिए डोनर स्पर्म का इस्तेमाल कर सकती है।
यह बदलाव सुप्रीम कोर्ट से पूछे गए सवाल के बाद हुआ है। जनवरी 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा था कि कई महिलाओं ने नियम 7 के खिलाफ अपील की है। इसके बावजूद इस पर कोई फैसला क्यों नहीं हो पा रहा है।
पहले नियम क्या था
पहले सरोगेसी कानून में नियम था कि बच्चे के लिए एग सेल्स या स्पर्म (गेमेट्स) पति-पत्नी का ही होना चाहिए। 14 मार्च 2023 को संशोधन के बाद सुप्रीम कोर्ट में 20 से ज्यादा याचिकाएं दायर की गईं। सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर 2023 में इन पर सुनवाई की थी।
इसके बाद जनवरी 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने पूछा था कि केंद्र सरकार इस पर कोई फैसला क्यों नहीं ले पा रही है? इसके जवाब में सरकार की तरफ से एडीशनल सॉलिसिटर जनरल (ASG) ऐश्वर्य भाटी ने बताया था कि सरकार पिछले साल सरोगेसी कानून में लाए गए संशोधन पर पुनर्विचार कर रही है।
सरोगेसी रेग्युलेशन एक्ट की धारा 2(S) में यह भी बताया गया है कि मां बनने की इच्छुक महिला के तहत 35 से 45 साल की विधवा या तलाकशुदा महिला को परिभाषित किया गया है। यानी किसी अविवाहित महिला को अब भी सरोगेसी के जरिए मां बनने की परमिशन नहीं है। इस नियम के खिलाफ भी मामला विचाराधीन है, जिसमें कहा गया है कि यह नियम भेदभावपूर्ण है, इसलिए इसे रद्द किया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मां बनना विवाह संस्था में रहते हुए ही आदर्श है। इसके बाहर रहकर मां बनना आदर्श नहीं। हमें इस बात की चिंता है क्योंकि हम बच्चे की भलाई की बात कर रहे हैं। हम पश्चिमी देशों की तरह नहीं हैं। हमें विवाह संस्था को संरक्षित करना होगा। इसके लिए आप हमें कट्टरपंथी कह सकते हैं, हमें यह मंजूर होगा।