राष्ट्र आजकल प्रतिनिधि । हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले भगवान गणेश की आराधना सबसे पहले की जाती है। सभी भगवानों में प्रथम पूज्य देवता भगवान गणेश ही हैं। शास्त्रों की माने तो कार्य में भगवान गणेश की पूजा वंदना नहीं होती है वह कार्य कभी भी सफल नहीं होता है। शास्त्रों में भगवान गणेश की सर्वप्रथम पूजा करने के पीछे कई कथाएं प्रचलित हैं।
गणेशजी अग्रपूज्य देवता
पौराणिक कथा के अनुसार,एक बार माता पार्वती स्नान करने से पहले अपने पुत्र गणेश को आदेश दिया कि जब तक मैं नहाकर न निकलूं तब तक किसी को भी अंदर न आने दिया जाए। बालक गणेश अपनी माता की आज्ञा का पालन करते हुए बाहर पहरेदारी करने लगे। जब भगवान शिव वहां पहुंचे तो बालक ने उन्हें अंदर जाने से रोका और बोले अन्दर मेरी मां नहा रही है, आप अन्दर नहीं जा सकते। शिवजी ने गणेशजी को बहुत समझाया, कि पार्वती मेरी पत्नी है। पर गणेशजी नहीं माने तब शिवजी को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने गणेशजी की गर्दन अपने त्रिशूल से काट दी और अन्दर चले गये, जब पार्वतीजी ने शिवजी को अन्दर देखा तो बोली कि आप अन्दर कैसे आ गये। मैं तो बाहर गणेश को बिठाकर आई थी। तब शिवजी ने कहा कि मैंने उसको मार दिया। तब पार्वती जी रौद्र रूप धारण क्लिया और कहा कि जब आप मेरे पुत्र को वापिस जीवित करेंगे तब ही मैं यहाँ से चलूंगी अन्यथा नहीं। शिवजी ने पार्वती जी को मनाने की बहुत कोशिश की पर पार्वती जी नहीं मानी। सारे देवता एकत्रित हो गए सभी ने पार्वतीजी को मनाया पर वे नहीं मानी। तब शिवजी ने विष्णु भगवान से कहा कि किसी ऐसे बच्चे का सिर लेकर आये जिसकी माँ अपने बच्चे की तरफ पीठ करके सो रही हो। विष्णुजी ने तुरंत गरूड़ जी को आदेश दिया कि ऐसे बच्चे की खोज करके तुरंत उसकी गर्दन लाई जाये। गरूड़ जी के बहुत खोजने पर एक हथिनी ही ऐसी मिली जो कि अपने बच्चे की तरफ पीठ करके सो रही थी। गरूड़ जी ने तुरंत उस बच्चे का सिर लिया और शिवजी के पास आ गये। शिवजी ने वह सिर गणेश जी के लगाया और गणेश जी को जीवन दान दिया,साथ ही यह वरदान भी दिया कि आज से कही भी कोई भी पूजा होगी उसमें गणेशजी की पूजा सर्वप्रथम होगी । इसलिए हम कोई भी कार्य करते है तो उसमें हमें सबसे पहले गणेशजी की पूजा करनी चाहिए, अन्यथा पूजा सफल नहीं होती।