2-3 दिसंबर 1984 की रात जहरीली गैस यूनियन कार्बाइड का रिसाव। इस खौफनाक रात को याद कर लोग 37 साल बाद आज भी सिहर उठते हैँ। उस रात ने हजारों जिंदगियों को लील लिया। कई परिवारों की पीढ़ियां तबाह कर दीं। कई को जिंदगी भर का जख्म दे दिया। इस घटना को याद कर रशीदा बी बताती हैं कि उस रात लोग तूफान के सैलाब की तरह भाग रहे थे। जो गिरा फिर उठा नहीं। उस रात लोग मौत की दुआ मांग रहे थे। क्योंकि उस रात जिंदगी से ज्यादा मौत प्यारी लग रही थी।
हादसे की कहानी-
भोपाल गैस हादसे की चश्मदीद रशीदा बी आज तक उस रात का मंजर नहीं भूल पाई हैँ। रशीदा बताती हैं कि 2 दिसंबर 1984 की रात से पहले हमें नहीं मालूम था कि भोपाल में यूनियन कार्बाइड नाम का कारखाना भी है। हम परदे में रहते थे। घर में बीड़ी बनाते थे। उस रात काम करते-करते रात 1 बज गए थे। हम सोने की तैयारी में थे, तभी ननद का लड़का उठा। बोला- बाहर धुंआ धुआं हो गया है। उसने दरवाजा खोला, तो आंख से आंसू आने लगे। नाक से पानी बहने लगा। हम थाना तलैया के पीछे रहते थे। वहां से आवाज आने लगी भागो भागो। बाहर का नजारा चौंकाने वाला था। थाना खाली था।
हमने देखा कि लोग सैलाब की तरह भागते आ रहे हैं। सब कह रहे थे कि भागो सब मर जाएंगे। हम ज्वाइंट फैमिली में रहते थे। हम सब भी भागने लगे। आधा किमी भी नहीं चल पाए कि आंखें बड़ी-बड़ी हो गईं। सांस लेना मुश्किल हो गया था। लोग स्टेशन की तरफ से भागते आ रहे थे। जो गिर गया, वह उठा नहीं। मां की गोद से बच्चा छूटा, तो उसे उठाया नहीं। वह कयामत का दिन था। आंखें थोड़ी सी भी खुलती थीं, तो लगता था लाशें ही लाशें पड़ी हैं। कानाें में बस एक ही आवाज आती थी ‘या अल्लाह मौत दे दें’ , ‘हे भगवान मौत दे दे’। उस दिन मौत प्यारी लग रही थी। ऐसा लगता था, जो मरा उसे सुकून मिल गया। किसी को उसका इलाज नहीं मालूम था।
रोजगार का इंतजाम करे सरकार
काजी कैंप की रहने वाली अमीना बी ने बताया कि रात को गैस निकली, तो पता नहीं चला। दरवाजा खोला, तो लाइट बंद हो गई। किसी से कुछ पूछे, तो कोई कुछ बता नहीं रहा था। मैंने अपने लड़के को नाले के पास फेंक दिया। सुबह पता नहीं किसी ने लाकर दिया। मेरा छोटा लड़का बीमार रहता है। कमाने वाला वही है। हमें कुछ नहीं मिल रहा। क्या खाएं हम लोग। कमाने वाले ही ठीक नहीं है। सरकार कोई परवाह नहीं कर रही। सरकार हमारे रोजगार के इंतजाम करें