फिलहाल थानों में खड़े वाहनों को यदि कबाड़ के भाव से भी बेचा जाए तो सरकार के खाते में करीब 34 लाख रुपए का राजस्व जमा हो सकता है। 25 पुलिस एक्ट में जब्त सबसे ज्यादा 97 वाहन गोविंदपुरा थाने में ही कबाड़ हो रहे हैं।

पांच महीने पहले ही भोपाल पुलिस ने 860 वाहनों को नीलाम कर सरकार के खाते में 24.93 लाख रुपए जमा करवाए। यानी हर वाहन औसतन 2898 रुपए का बिका। यह तस्वीर राजधानी के एमपी नगर थाने में जब्त खड़े कंडम वाहनों की है। वाहनों से बड़े होते ये पौधे इन वाहनों की हालत बयां कर रहे हैं। राजधानी के 40 थानों में ऐसे 1168 वाहन जंग खाकर कंडम होने की कगार पर हैं।
आइये जाने कुछ मुख्य वजह इनके कबाड़ बनने के पीछे;
- रिकॉर्ड नहीं : विवेचना अधिकारी वाहनों पर अपराध क्रमांक व जब्ती की जानकारी नहीं लिखते।
- इन्फ्रास्ट्रक्चर : थानों का बेहतर इन्फ्रास्ट्रक्चर न होने से वाहनों को खुले में रखना पड़ता है। इससे इनकी उम्र औसत से काफी कम हो जाती है।
- नाकाफी कोशिश टीआई को हर माह वाहनों की सूची भेजकर मजिस्ट्रेट से नीलामी करानी चाहिए।
- गैरजिम्मेदारी : वाहनों की देखरेख की जिम्मेदारी थाने के मालखाना मुंशी की होती है।
वर्ष 1999 से थानों में खड़े इन वाहनों को लेने कोई नहीं आया। देखरेख के अभाव में तकरीबन सभी वाहन धूप और बरसात झेलकर कंडम की कगार पर थे। मार्च से अब तक एक बार फिर इन थानों में 1168 वाहन इकट्ठा हो गए हैं। भोपाल पुलिस ने करीब पांच महीने चली प्रक्रिया के बाद बीती 19 मार्च तक 860 वाहनों को नींलाम करवाया। ये सभी वाहन केवल 25 पुलिस एक्ट में जब्त थे।