भोपाल राष्ट्र आजकल प्रतिनिधि कोरोनावायरस की दूसरी लहर में युवाओं के गंभीर लक्षणों और मौतों के कई मामले सामने आ रहे हैं। कई केस तो ऐसे हैं जहां मरीज में कोई लक्षण नहीं थे, फिर एकाएक ऑक्सीजन का लेवल घटता चला गया। उसे कोई भी संकेत नहीं मिला और सेचुरेटेड ऑक्सीजन का लेवल 50% तक पहुंच गया। ऐसा होने का एक प्रमुख कारण है- हैप्पी हाइपोक्सिया।इसमें होता यह है कि शरीर में वायरल लोड तो होता है, और उसकी वजह से फेफड़ों को नुकसान भी पहुंचता है। ऑक्सीजन का स्तर नीचे जाता है और नजर न रखें तो 50% तक भी पहुंच सकता है। फिर एकाएक सांस लेने में तकलीफ, कमजोरी, घबराहट, पसीना आना, चक्कर आना और आंखों के सामने अंधेरा छा जाना जैसे लक्षण होने लगते हैं। दो दिन पहले तक सामान्य नजर आ रहा मरीज एकाएक वेंटिलेटर पर पहुंच जाता है। यह हैप्पी हाइपोक्सिया क्या है और यह किस तरह मरीजों की स्थिति को बिगाड़ रहा है, इस पर हमने भोपाल के डॉ. वीके भारद्वाज, एमडी, हेमेटोलॉजिस्ट से बातचीत की।क्या है हैप्पी हाइपोक्सिया? यह कोरोना का एक नया लक्षण है। महामारी एक साल से अधिक पुरानी हो गई है। फिर भी नए-नए लक्षण अब भी सामने आ ही रहे हैं। सर्दी, बुखार, खांसी से शुरू होकर यह इन्फेक्शन गंभीर निमोनिया और सांस लेने की समस्या तक पहुंचता है। रिसर्चर्स ने कुछ समय में डायरिया, गंध-स्वाद का न होना, खून में थक्के जमने जैसे कई नए लक्षण देखे हैं। कोविड-19 प्रोटोकॉल का पालन करने के बाद भी इन्फेक्शन से छुटकारा नहीं मिल रहा है। नए लक्षण हैप्पी हाइपोक्सिया ने विशेषज्ञों को चकित किया है क्योंकि भारत में दूसरी लहर में इन्फेक्टेड ज्यादातर युवाओं को इसका ही सामना करना पड़ा है। हाइपोक्सिया का मतलब है- खून में ऑक्सीजन के स्तर का बहुत कम हो जाना। स्वस्थ व्यक्ति के खून में ऑक्सीजन सेचुरेशन 95% या इससे ज्यादा होता है। पर कोरोना मरीजों में ऑक्सीजन सेचुरेशन घटकर 50% तक पहुंच रहा है। हाइपोक्सिया की वजह से किडनी, दिमाग, दिल और अन्य प्रमुख अंग काम करना बंद कर सकते हैं। कोरोना मरीजों में शुरुआती स्तर पर कोई लक्षण नहीं दिखता। वह ठीक और ‘हैप्पी’ ही नजर आता है।कोरोना मरीजों में अचानक ऑक्सीजन स्तर क्यों कम हो जाता है? ज्यादातर रिसर्चर्स और मेडिकल एक्सपर्ट्स के मुताबिक फेफड़ों में खून की नसों में थक्के जम जाते हैं। इसे ही हैप्पी हाइपोक्सिया का प्रमुख कारण माना जाता है। इन्फेक्शन होने पर शरीर में सूजन बढ़ती है। इससे सेलुलर प्रोटीन रिएक्शन तेज हो जाती है। तब खून के थक्के बनने लगते हैं। इससे फेफड़ों को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन सप्लाई नहीं होती और खून में ऑक्सीजन सेचुरेशन कम होने लगता है।