सूत्रों के मुताबिक़ संक्रमित लोगों में कोविड-19 का खौफ अब पहले जैसा नहीं रहा। मनोचिकित्सक इसे कोरोना को मात देने का एक सकारात्मक लक्षण मान रहे हैं।
भोपाल (राष्ट्र आजकल प्रतिनिधि): हमीदिया अस्पताल के चिकित्सा मनोविज्ञानी डॉ.राहुल शर्मा ने बताया कि अप्रैल, मई, जून माह में उनकी टीम कोविड सेंटर और क्वारंटाइन सेंटर जाती थी। राजधानी में लॉकडाउन खुलने के बाद कोरोना का संक्रमण बढ़ा है।
22 मार्च को लॉकडाउन लगने के बाद सोशल मीडिया, टीवी चैनल पर कोरोना के दंश का भयानक रूप दिखाया जाता रहा। उसका दुष्परिणाम मरीजों में देखने में मिला।
क्वारंटाइन सेंटर में रखे गए लोग तो खुदकुशी करने तक की धमकी देने लगे थे। ऐसे तीन मामले आए थे। इनमें से दो महिलाएं थीं। उनकी काउंसिलिंग की गई। बताया गया कि उन्हें आखिर यहां क्यों लाया गया है। कोराना का खतरा और बचाव के तरीके समझाने के बाद बड़ी मुश्किल से वे लोग अवसाद से बाहर आए। उस वक्त संक्रमित मरीज भय ग्रस्त और उदास मिलते थे। वे सोचते रहते थे शायद वह जिंदा नहीं रहेंगे। कोरोना के भय से उबारने के लिए उनकी कई बार काउंसिलिंग करनी पड़ती थी।
उनकी टीम में मनारोग विशेषज्ञ डॉ. आरके बैरागी, नर्स सपना राय भी शामिल हैं। वे लोग अभी तक दो हजार से अधिक मरीजों से बातचीत कर चुके हैं। मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी के निर्देश पर यह कार्य चल रहा है। डॉ. शर्मा ने बताया वर्तमान स्थिति में लोगों में कोरोना का डर काफी कम हुआ है। जब वे लोग कोविड सेंटर में जाते हैं, तो मरीज प्रफुल्लित मिलते हैं। व्यायाम करते हैं। वार्ड के मरीजों से विभिन्न मुद्दों पर खुलकर बतियाते हैं। उनका कहना रहता है कि कोरोना आया जरूर है। लेकिन, शीघ्र चला जाएगा।