राष्ट्र आजकल। भक्ति में मन उन्हीं लोगों का लग पाता है, जो अपने परिवार से निस्वार्थ प्रेम करते हैं पुराने समय में एक व्यक्ति के परिवार में बार-बार वाद-विवाद होते रहते थे। इस बात से बहुत दुखी रहता था। तंग आकर उसने एक दिन सोचा कि अब मुझे संन्यास ले लेना चाहिए। वह व्यक्ति घर पर बिना किसी को कुछ बताए सबकुछ छोड़कर जंगल की ओर निकल गया। जंगल में उसे एक आश्रम दिखाई दिया। वह आश्रम में पहुंचा तो उसने देखा कि एक संत पेड़ के नीचे बैठकर ध्यान कर रहे थे। दुखी व्यक्ति संत के सामने बैठ गया और उनका ध्यान खत्म होने का इंतजार करने लगा। जब संत का ध्यान पूरा हुआ और उन्होंने आंखें खोली तो व्यक्ति ने संत से कहा कि गुरुदेव मुझे अपनी शरण में ले लीजिए। मैं आपका शिष्य बनना चाहता हूं। मैं सब कुछ छोड़कर भगवान की भक्ति करने आया हूं। संत ने उससे पूछा कि तुम अपने घर में किसी से प्रेम करते हो? व्यक्ति ने कहा कि नहीं, मैं अपने परिवार में किसी से प्रेम नहीं करता। संत ने कहा कि क्या तुम्हें अपने माता-पिता, भाई-बहन, पत्नी और बच्चों में से किसी से भी लगाव नहीं है। व्यक्ति ने संत को जवाब दिया कि ये पूरी दुनिया स्वार्थी है। मैं अपने घर-परिवार में किसी से भी स्नेह नहीं रखता। मुझे किसी से लगाव नहीं है, इसीलिए मैं सब कुछ छोड़कर संन्यास लेना चाहता हूं।