राष्ट्र आजकल प्रतिनिधि। कौरव और पांडवों के बीच युद्ध लगभग तय हो चुका था। युद्ध की तैयारियां चल रही थीं। उस समय श्री कृष्ण पांडवों की ओर से दूत बनकर हस्तिनापुर पहुंचे, ताकि किसी तरह ये युद्ध टाला जा सके। श्री कृष्ण ने दुर्योधन को पांडवों से युद्ध न करने की सलाह दी थी। श्रीकृष्ण ने दुर्योधन को बहुत समझाया कि ये युद्ध दोनों ही पक्षों के लिए सही नहीं है, इसलिए इस युद्ध ना हो। दुर्योधन को श्री कृष्ण ने बहुत समझाया, लेकिन वह नहीं माने। इसके बाद दुर्योधन ने श्री कृष्ण को अपने महल में भोजन करने के लिए आमंत्रित किया। श्री कृष्ण ने दुर्योधन का आमंत्रण अस्वीकार कर दिया। इस बात से दुर्योधन को बहुत आश्चर्य हुआ। दुर्योधन ने श्री कृष्ण से पूछा कि आप मेरे यहां भोजन क्यों नहीं कर रहे हैं , श्री कृष्ण ने दुर्योधन से कहा कि भोजन तो प्रेमवश किया जाता है, दूत का धर्म है कि जब तक उसका काम पूरा न हो जाए, तब तक वह राजा के यहां खाना नहीं खा सकता है। इसलिए मैं तुम्हारे यहां भोजन नहीं कर सकता। दुर्योधन से मिलने के बाद और उसका शाही भोजन छोड़कर श्री कृष्ण विदुर के घर गए। वहां उन्होंने बहुत ही सादा खाना खाया और रात भी उनके घर पर ही बिताई।इस कथा की सीख यह है कि अगर कोई व्यक्ति प्रेम से सादा खाना खिलाए तो उसे खाने में संकोच नहीं करना चाहिए। लेकिन, जहां प्रेम न हो, जहां अन्न गलत कामों से अर्जित किया गया है, वहां भले ही शाही व्यंजन हों, उन्हें छोड़ देना चाहिए।