भालुओ के गढ़ में गजराज

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राष्ट्र आजकल / अमजद खान / छत्तीसगढ़ / एशिया महाद्वीप का ग्रीन बेल्ट मरवाही वनमंडल जो अपनी एक अलग पहचान भालुओ के गढ़ के रूप में जाना जाता है आज वह पहचान विलुप्त होने की दिशा में तेजी से अग्रसर है लगातार घटता वन क्षेत्रफल ये ना सिर्फ मानव जीवन के लिए जितना बड़ा खतरा है उतना वन्य प्रजातियों पर भी इसका असर देखने को मिलता है आये दिन भालु या तो दुर्घटनाओं में मारे जाते है या भालुओ का अवैध शिकार कर लिया जाता है . इसी भालु के गढ़ में हर साल गजराज दस्तक दे जाते है क्या कारण है कि भालुओ के गढ़ में गजराज के प्रवेश का

घटता वनो का क्षेत्रफल चिंताजनक : –
लागतार वनो का क्षेत्रफल सिमटता जा रहा है जो चिंता के साथ साथ जांच का विषय भी है चूंकि वनविभाग के अपने आंकड़े वनविभाग को मुँहबाये चिढ़ाते हुए नजर आते है . आकड़ो की अगर बात की जाए तो मरवाही वनमंडल में हर साल करोडो का बजट पौधे रोपण के नाम पर आता है मगर इस बजट मे अधिकारी ही चांदी काटते नजर आते है जबकि धरातल पर जंगल बचाने के नाम पर अवैध पेड़ो की कटाई का सिलसिला बदस्तूर जारी है साथ ही अवैध वनाधिकार पट्टे की वजह से वनक्षेत्रफल सिमटता जा रहा है . मगर उक्त गंभीर मामले में वनविभाग किसी भी जवाबदेही से हमेशा बचता नजर आता है पौधे सिर्फ कागजो तक ही सीमित रह जाते है इन कागजो में दर्ज रिकार्ड अधिकारियों की जड़े मजबूत करने का काम कर रहे है . इससे आम जनजीवन के साथ साथ वन्य प्रजातियों के जीवन मे भी संकट मंडराने लगा है .

जामवंत योजना ठंडे बस्ते में : –
भालुओ के संरक्षण और संवंर्धन के नाम पर जामवन्त योजना लागू की गई थी मगर यह योजना शुरू होने के साथ ही खत्म होती चली गई वनविभाग भले भालुओ के संरक्षण और संवंर्धन कि खोखली दुहाई देता रहे मगर दुर्भाग्य कहिए कि आज भालुओ के लगभग प्राकृतिक रहवास प्राकृतिक भोजन नष्ट हो गए जिसकी वजह से आज बचे कूचे भालु जंगल से शहर और ग्रामीण क्षेत्रो में पलायन शुरू कर दिए जिसका खामियाजा यह देखने को मिला कि आये दिन भालुओ का अवैध शिकार हो जाता है या भालू दुर्घटनाओं का शिकार हो जाते है .जामवन्त योजना के तहत शासन प्रति वर्ष करोडो का भुगतान करती है मगर इस बजट पर जिम्मेदार आधिकारी डाका डाल देते है . जिसका परिणाम यह है कि आज भालुओ के गढ़ में भालू विलुप्त होने की कगार पर पहुँच चुके है
आपको बता दे कि यह क्षेत्र सफेद भालुओ के लिए भी विख्यात है मगर संरक्षण और संवंर्धन न होने के कारण यह दुर्लभ प्रजाति भी अब विलुप्त हो चुकी है .

अवैध उत्खनन और ब्लास्टिंग आम जनजीवन के साथ वन्य प्रजातियों के लिए भी खतरा : –
मरवाही वनमंडल जो भालुओ का गढ़ जहाँ भालुओ के प्राकृतिक रहवास क्षेत्र में अवैध उत्खनन और अवैध ब्लाटिंग की वजह से वन्य प्रजातियों के साथ साथ आमजनजीवन में भी खतरा मंडराने लगा है . इससे भालुओ का नर्संगिक रहवास इलाका खत्म होता जा रहा है जिनको वन्य प्रजातियों के संरक्षण का जिम्मा मिला है वह ही इसके भक्षक बन अपनी जेब गर्म करने में मस्त है . जबकि किसी भी प्रजाति का विनाश समूची प्रजाति का विनाश कहलाता है वही लगभग वन्य प्रजाति अब विलुप्त होने की कगार पर है . अगर अब भी वन्य प्रजातियों को बचाने के लिए कोई सार्थक पहल नही की गई तो वह दिन दूर नही जब पूरा मरवाही वनमंडल भालुविहीन हो जाएगा

भालु के गढ़ में गजराज की दस्तक : –

भालुओ के गढ़ में कई महीनों से गजराज भ्रमण कर रहे है इसका सबसे बड़ा कारण है वन क्षेत्र का सिमटना हाथी के नाम पर योजनाए तो चलाई जाती है मगर इन योजनाओं का असर धरातल पर नही दिखलाई पड़ता गजराज विचरण क्षेत्र के नाम पर लेमरू प्रोजेक्ट की शुरुआत की थी .
लेमरु हाथी रिज़र्व के जंगल को चार हज़ार से साढ़े चार सौ वर्ग किलोमीटर करके, अड़ानी ग्रुप को यहाँ की चार लाख करोड़ की लागत की 6 कोयला खदानों के MDO की ग़ैर क़ानूनी स्वीकृति देकर छत्तीसगढ़ को अड़ानीगढ़ बनाने का नापाक सौदा किया है .जिससे हाथियों का अस्तित्व पर भी खतरा मंडराने लगा है तब तो हाथी जंगल से पलायन कर शहर की तरफ अपना रुख करने लगे है . अगर अब भी राज्य शासन की चेतना जाग जाए तो बचे हुए हाथियों को बचाया जा सकता है मगर इस ओर शासन की किसी भी प्रकार की पहल न होना यह शासन के वन्य प्रजाति बचाने की मुहिम को मुँहबाये चिढ़ाते हुए नजर आती है .

कैसे बचाया जाए विलुप्त होती प्रजाति भालू और गजराज को :-
जिस तरह यह वन्य प्रजातिया विलुप्त हो रही है इन्हें बचाने के लिए शासन को चाहिए कि शासन अब बचे हुए जंगलो को संरक्षित एवं संवर्धित करे अवैध जंगलो की कटाई , पहाड़ो का अवैध उत्खनन , के साथ साथ जंगलो का इस तरह संरक्षण और संवंर्धन किया जाना चाहिए जिसमे वन्य प्राणियों के लिए सघन वन जंगलो में ही भोजन की व्यवस्था अंतर्गत चार , तेंदू , करौंदा , झरबेरी , महुआ , उक्त प्रजाति के पेड़ छूट प्रजाति के होने के कारण बेतहासा काटा जाता है जिससे आज वनो में वन्य प्राणियों को भोजन के लिए दर दर भटकना पड़ता है और वन्य प्राणी अपने पेट की आग बुझाने के लिए गांव की ओर रुख करने लगे है जहाँ पर जंगली जानवर गांव में भोजन की तलाश में घुसने के कारण ग्रामीणों द्वारा अपनी जान की सुरक्षा के लिए मार दिया जाता है और इनके अवैध शिकार भी हो रहे है इसके साथ ही शासन को चाहिए कि वनो के अंदर वनाधिकार पट्टे के नाम पर वोट की राजनीति के के लिए बेतहासा वन क्षेत्र के पट्टे बांटे जा रहे है इससे वनो का क्षेत्रफ़ल खत्म सा हो रहा है और जिन किसानों को वन क्षेत्र में पट्टे मिलते है वे किसान जंगलो में अपना आवास एवं खेती के नाम पर वनो को काटकर वनो को नष्ट कर रहे है जिन्हें बचाने के लिए निश्चित ही सार्थक पहल की जरूरत है ताकि बचे हुए जंगलो को पुनः संरक्षित और संवर्धित किया जाना चाहिए।

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