लोकायुक्त पुलिस (विशेष स्थापना पुलिस) ने ही अपनी चार्जशीट में कहा कि जहां पर काम बताया गया है, वहां सड़क बन चुकी है। इसलिए काम सत्यापित नहीं हो सकते हैं। इसलिए आरोपों से मुक्त किया जाए। पुलिस की ओर से तर्क दिया गया कि आरोप प्रमाणित हैं। आरोपितों के खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य हैं। कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुन लिया है, अब 29 सितंबर को फैसला सुनाया जाएगा। ढाई साल बाद आरोप तय करने को लेकर बहस हुई है। 29 सितंबर के बाद ट्रायल तय होगी।

ग्वालियर (राष्ट्र आजकल प्रतिनिधि): आरोपितों ने अपने ऊपर लगाए आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि पांच साल बाद इस मामले की शिकायत की गई। एफआइआर 3 साल बाद की गई। नगर निगम के जल प्रदाय विभाग में 16 साल पहले हुए घोटाले के आरोपितों पर विशेष न्यायालय में आरोप तय करने के लिए बहस पूरी हो गई। 29 सितंबर को ट्रायल को लेकर फैसला सुनाया जाएगा।
निगम ने खास ठेकेदारों को मेंटेनेंस का काम दिया गया। जिस जगह हेंडपंप व पानी की लाइन नहीं थी, वहां मेंटेनेंस बताया गया था। मौके पर जाकर कामों के प्राकल्लन तैयार नहीं किए गए। ठेकेदारों की चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं अपनाई गई। वर्ष 2004 में नगर निगम के जल प्रदाय विभाग में संधारण कार्यों की करीब 1200 से अधिक फाइलें तैयार की गईं। इन फाइलों में 10 हजार से नीचे के काम स्वीकृत किए गए।
आरोपितों ने हाई कोर्ट में याचिकाएं दायर की थी, लेकिन वहां से कोई राहत नहीं मिल सकी। आरोपित ने खुद को केस से बाहर किए जाने के लिए जो आवेदन कोर्ट में पेश किए थे, उन पर गत दिवस बहस पूरी हो गई। कोर्ट का फैसला आने के बाद ट्रायल प्रोग्राम तय किया जाएगा। इस फर्जीवाड़े की शिकायत लोकायुक्त में की गई। लोकायुक्त पुलिस ने जांच कर इस मामले में केस दर्ज किया था। 2017 में इस मामले में 11 लोगों के खिलाफ चालान पेश किया गया।