राष्ट्र आजकल प्रतिनिधि।वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद मामले में मुस्लिम पक्ष को इलाहाबाद हाईकोर्ट से बड़ा झटका लगा है। कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की उन सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया है जिसमें ज्ञानवापी मस्जिद के स्वामित्व को लेकर चुनौती दी गई थी। हाईकोर्ट के फैसले के बाद साल 1991 के मुकदमे के ट्रायल को मंजूरी मिल गई है। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में वाराणसी की अदालत को 6 महीने में मुकदमे की सुनवाई पूरी करने का भी आदेश दिया है।
ज्ञानवापी मामला प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट से बाहर
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि ज्ञानवापी का मामला प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के दायरे से बाहर है। ऐसे में इस मामले की सुनवाई निचली अदालत में की जा सकती है। इस फैसले का असर ज्ञानवापी परिसर में किए गए सर्वे पर भी पड़ सकता है। हिंदू पक्ष का कहना है कि हाल में हुए सर्वे में वुजुखाना समेत जो एरिया रह गया है उसका भी सर्वे किया जा सकता है। इसके अलावा खुदाई की भी इजाजत दी जा सकती है।
इस मामले में 8 दिसंबर को हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। जिन 5 याचिकाओं पर हाईकोर्ट का फैसला आया है उसमें से 2 याचिकाएं सिविल विवाद और 3 याचिकाएं ASI सर्वे को लेकर दाखिल की गई थीं। मुस्लिम पक्ष की ओर से दाखिल की गई याचिकाओं में कहा गया था कि प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के तहत इस मामले में सुनवाई नहीं की जा सकती है। हालांकि कोर्ट ने साफ कर दिया है कि ज्ञानवापी के मामले में यह नियम लागू नहीं होता है।
क्या है प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991?
इस कानून को 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के कार्यकाल में लाया गया था। इस कानून के तहत 15 अगस्त 1947 से पहले मौजूद किसी भी धर्म की उपासना स्थल को किसी दूसरे धर्म के उपासना स्थल में नहीं बदला जा सकता। प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट में कहा गया कि अगर कोई ऐसा करता है तो उसे जेल भेजा जा सकता है। कानून के मुताबिक आजादी के समय जो धार्मिक स्थल जैसा था वैसा ही रहेगा। सुप्रीम कोर्ट में पूजा स्थल अधिनियम को चुनौती देते हुए कई याचिकाएं दायर की गई हैं। इन याचिकाओं में इस अधिनियम की वैधता पर सवाल उठाया गया है।