अटल बिहारी वाजपेयी का सपना था कि ग्वालियर में हिंदी भवन का निर्माण हो। इसके लिए उन्होंने जीते-जी काफी प्रयास किए। ग्वालियर के अपने साहित्यकार साथियों से उन्होंने यहां तक कहा कि ‘क्या मेरे मरने के बाद बनेगा हिंदी भवन’। इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि उनके निधन के साल भर बीत जाने के बाद हिंदी भवन के लिए आवंटित भूमि पर घास-फूस नजर आती है।
ग्वालियर (राष्ट्र आजकल प्रतिनिधि): हिंदी के प्रति अटल बिहारी वाजपेयी का प्रेम को इस उदाहरण से आसानी से समझा जा सकता है; मोरारजी देसाई की जनता पार्टी सरकार के विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 1977 में संयुक्त राष्ट्र महासभा के 32वें सत्र में हिंदी में भाषण देकर राष्ट्रभाषा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान दिलाया था।
एक घटना के अनुसार मध्य भारतीय हिंदी साहित्य सभा के पदाधिकारी और अटलजी के निकटस्थ रहे साहित्यकार उनसे दिल्ली में मिलने गए थे। इस दौरान अटलजी ने हिंदी भवन की बात छेड़ दी। अपेक्षित प्रगति न होने पर उन्होंने बड़े दुखी मन से कहा था, ‘क्या मेरे मरने के बाद ग्वालियर में हिंदी भवन बनेगा?
मैं खुद हिंदी भवन बनाने के लिए 1-2 करोड़ रुपये का सहयोग दे सकता हूं। सत्यार्थी बोले- अटलजी का सपना कहें या अंतिम इच्छा, हिंदी भवन का न बन पाना दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा।
2018 में शिवराज सिंह सरकार ने हिंदी भवन के निर्माण के लिए सात करोड़ रुपये की राशि स्वीकृत कर दी थी। इसी बीच उनकी सरकार चली गई। मार्च 2020 में शिवराज सिंह फिर सीएम बने, लेकिन कोरोना महामारी के कारण इस दिशा में कोई पहल नहीं हो सकी।