राष्ट्र आजकल प्रतिनिधि। मासिक शिवरात्रि भगवान शिव और शक्ति के संगम का विशेष पर्व माना जाता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, मासिक शिवरात्रि हर महीने के कृष्ण पक्ष के 14वें दिन मनाई जाती है। यह व्रत न केवल व्यक्ति को अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण रखने में मदद करता है, बल्कि क्रोध, ईर्ष्या, अहंकार आदि भावनाओं से भी बचाता है। शास्त्रों के अनुसार, मासिक शिवरात्रि और सोमवार भगवान शिव को समर्पित माने जाते हैं। साल में एक बार महाशिवरात्रि बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। शिव की पूजा में महीने में एक बार मासिक शिवरात्रि मनाने की भी परंपरा है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, महाशिवरात्रि के दिन आधी रात को भगवान शिव का जन्म शिवलिंग के रूप में हुआ था। ऐसे में मासिक शिवरात्रि के दिन आपको यह व्रत कथा जरूर पढ़नी चाहिए। यह पौराणिक कथा भगवान शिव की कृपा दृष्टि से संबंधित है। पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार उनके गांव में ब्राह्मण भक्त रहता था। उसकी पत्नी बहुत धार्मिक थी और हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि व्रत रखती थी। अपनी पत्नी की आदतों को देखकर ब्राह्मण भी यह व्रत करने लगा। एक बार, मासिक शिवरात्रि के दिन, ब्राह्मण और उसकी पत्नी ने संगीत के साथ भगवान शिव की पूजा की और उनके चरणों में अपनी भक्ति व्यक्त की। दोनों ने पूरी श्रद्धा के साथ व्रत रखा और भगवान शिव से आशीर्वाद मांगा कि वे उन पर हमेशा अपनी कृपा बनाए रखें। व्रत रखने के बाद ब्राह्मण और उसकी पत्नी ने इस दिन गांव के पथिकों को बुलाया और उन्हें दक्षिणा दी। इस दिन को भिक्षाटनी भी कहा जाता है। इसका अर्थ है कि इस दिन भक्त अपने अछूते और पवित्र भाग्य को अन्य लोगों के साथ साझा करता है। उसी समय गांव में एक बहुत गरीब और दुखी ब्राह्मण आया। ब्राह्मण और उसकी पत्नी ने उसे भोजन के लिए बुलाया और भोजन दिया। इस प्रकार, शिवरात्रि के मासिक व्रत का पालन करके, ब्राह्मण और उसकी पत्नी ने न केवल अपने अछूतों को साझा किया, बल्कि दुखी लोगों को अपने साथ भोजन खिलाने का विशेषाधिकार भी दिया। इसके बाद उन्हें भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त हुआ और उनकी सभी इच्छाएं पूरी हो गई।