ट्रस्ट की ओर से कहा गया कि करीब छह दशक पहले ट्रस्ट बना था। इसमें शासन के तीन और इतने ही राजघराने की ओर से सदस्य हैं। ट्रस्ट पर गलत तरीके से संपत्ति बेचने का आरोप लगाया जा रहा है।

इंदौर (राष्ट्र आजकल प्रतिनिधि): पिछली सुनवाई में शासन ने अपने तर्क रखे थे। खासगी ट्रस्ट की कुछ संपत्तियों के सरकारी दावे के खिलाफ सोमवार को ट्रस्ट व सतीश मल्होत्रा की ओर से हाई कोर्ट में अंतिम बहस पूरी हो गई।
ट्रस्ट व मल्होत्रा की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल, श्याम दीवान व अभिनव मल्होत्रा ने पैरवी की। ट्रस्ट की ओर से कहा गया कि पहली बार संपत्ति बेचे जाने का प्रस्ताव शासन को भेजा था तो शासन की ओर से जवाब था कि ट्रस्ट में सरकारी सदस्य मौजूद हैं। जब ट्रस्ट में सरकारी सदस्य हैं तो फिर संपत्ति अवैध तरीके से कैसे बिक सकती है। संपत्ति बेचने की अनापत्ति पर शासन के प्रतिनिधियों के भी हस्ताक्षर हैं।
राज घराने और सरकार के बीच ही यह तय हुआ था कि जो धार्मिक संपत्तियां हैं, उनकी देखरेख ट्रस्ट के जरिए की जाएगी। ट्रस्ट को किसी तरह की अनापत्ति सरकार से लेने की जरूरत नहीं है। पिछले वर्षों में कलेक्टर ने बगैर ट्रस्ट का पक्ष सुने 26 राज्यों में ट्रस्ट की सभी 246 संपत्तियों को शासन के अधीन घोषित कर दिया।
ट्रस्ट गठन के बाद से अब तक महज छह संपत्ति बेची गई है। जिनकी कुल कीमत भी एक करोड़ रुपए नहीं है। जबकि मल्होत्रा व उषादेवी होल्कर करोड़ों रुपए मंदिर, घाटों के निर्माण और देखरेख के लिए खर्च कर चुके हैं। संपत्तियों की देखभाल के लिए बाड़ा बेचा था- ट्रस्ट की ओर से जवाब दिया गया कि 246 संपत्ति का रखरखाव करने सरकार की ओर से महज सवा दो लाख रुपए मिलते हैं। इतने पैसों में संपत्ति की देखरेख नहीं हो सकती।
कुशावर्त घाट बेचने का आरोप भी गलत है। घाटा को बेचा ही नहीं गया। यह नैनीताल हाई कोर्ट ने भी माना है। घाट के पास एक बाड़ा था जिस पर अतिक्रमण हो रहा था। उसे बेचा गया है।