एमआर-10 पर मुख्यमंत्री का काफिला गुजरने से दो दिन पहले कुछ इसी अंदाज में मेंटेनेंस किया गया था।

एक तगारी में धूला चूरी और सीमेंट के मिश्रण को गड्ढे में भरकर मेंटेनेंस कर दिया जाता है। शहर की 332 किलोमीटर डामर की सड़कों के मेंटेनेंस के लिए निगम हर साल 10 करोड़ रुपए खर्च करता है।
मजदूर जितना भी झुक जाएं जिम्मेदार तो उन्हें ठीक से नजर आ जाए सड़कों की ये बर्बादी, 148 स्थानों पर जल जमाव, समाधान पर नहीं ध्यान, गड्ढे होते ही लगाओ बैरिकेड्स.
एक ही बारिश में फिर वहां गड्ढे उभरने लगे। हैरानी की बात यह है कि ऐसे ही मेंटेनेंस के लिए निगम 10 करोड़ रुपए सालाना बजट रखता है। जून में ही ठेकेदारों के टेंडर कर दिए जाते हैं। जब ठेकेदार के कर्मचारी से पूछा कि गड्ढे भरने के लिए क्या डाल रहे हो तो एक ने कहा चूरी की धूल है। थोड़ी सीमेंट मिलाई है। इससे गड्ढा भर जाएगा क्या? पूछने पर कर्मचारी कोई जवाब नहीं दे सका। बैरिकेड्स लगाकर मेंटेनेंस किए गए गड्ढे पर उसने बोरा जरूर डाल दिया। ऐसा ही पैचवर्क पूरे एमआर-10 पर दिखा।
19 में से 14 वार्डों में ये हालात हर साल बनते हैं, लेकिन इनका स्थायी हल निकालने के बजाय निगम मेंटेनेंस ही करता है। निगम के जनकार्य विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक शहर में 148 स्थानों पर हर साल पानी भरता है। इनमें सीमेंट सड़कों वाले कुछ स्थानों पर तो थोड़े समय बाद पानी उतर जाता है लेकिन डामर सड़क पर बड़े गड्ढे हो जाते हैं।
बारिश होते ही निगम की गाड़ी निकलती है और बैरिकेड्स लगाकर पैचवर्क के लिए ठेकेदार का इंतजार करती है। निगम को पता है कि किस जोन में कहां पानी भरता है। इस पर परिषद की बैठकों में सवाल भी उठता है कि जून में ही बारिश के पहले पानी निकासी की व्यवस्था करने के बजाय निगम मेंटेनेंस के टेंडर पर ही क्यों फोकस करता है?