राष्ट्र आजकल प्रतिनिधि । ईरान में 16 सितंबर से शुरू हुआ हिजाब के खिलाफ विरोध प्रदर्शन जारी है। महिलाओं के साथ पुरुष भी प्रदर्शन में शामिल हो गए हैं। अब ये 15 शहरों में फैल गया है। पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसक झड़पें भी हो रही हैं। आंदोलन कर रहे लोगों को रोकने के लिए पुलिस ने गोलियां चलाईं। गुरुवार को फायरिंग में 3 प्रदर्शनकारियों की मौत हुई। 5 दिन में मरने वालों की तादाद 31 हो गई है। सैकड़ों लोग घायल हैं।
यह मामला 13 सितंबर को शुरू हुआ। तब ईरान की मॉरल पुलिस ने 22 साल की युवती महसा अमिनी को हिजाब न पहनने के आरोप में गिरफ्तार किया। 3 दिन बाद यानी 16 सितंबर को उसकी लाश परिवार को सौंपी गई। सोशल मीडिया के जरिए मामला लोगों तक पहुंचा और अब तक यह विवाद 31 लोगों की जान ले चुका है।
माशा के पिता अमजद अमिनी ने BBC से बातचीत में कहा- पुलिस और सरकार सिर्फ झूठ बोल रही है। मैं बेटी की जान बख्शने के लिए उनके सामने गिड़गिड़ाता रहा। जब मैंने उसका शव देखा तो वो पूरी तरह कवर था। सिर्फ चेहरा और पैर नजर आए। पैरों पर भी चोट के निशान थे।
CNN से बातचीत में ह्यूमन राइट्स वॉच की अफसर तारा सेफारी ने कहा- अगर आप ईरान के किसी आम परिवार या महिला से मिलेंगे तो वो बताएंगे कि मॉरल पुलिस कैसी होती है। उनका आए दिन इससे सामना होता है। तारा के मुताबिक- यह एक अलग पुलिस है। इसके पास कानूनी ताकत, हथियार और अपने जेल हैं। हाल ही में इसने ‘री-एजुकेशन सेंटर्स’ शुरू किए हैं।
डिटेंशन सेंटर्स में हिजाब या दूसरे मजहबी कानून न मानने वाले लोगों को रखा जाता है। उन्हें इस्लाम के सख्त कानूनों और हिजाब के बारे में पढ़ाया जाता है। यह बताया जाता है कि हिजाब क्यों जरूरी है। रिहाई से पहले इन कैदियों को एक एफिडेविड पर सिग्नेचर करने होते हैं। इसमें लिखा होता है कि वो एफिडेविड की सख्त शर्तों का पालन करेंगे।
ह्यूमन राइट्स वॉच की न्यूयॉर्क में रहने वाली हादी घामिनी कहती हैं- 2019 से मॉरल पुलिसिंग बेहद सख्त हो गई। इसके हजारों एजेंट्स सादे कपड़ों में भी घूमते रहते हैं। न जाने कितनी महिलाओं को गिरफ्तार कर जेल में डाला गया, उन्हें टॉर्चर किया गया।