राष्ट्र आजकल प्रतिनिधि । केंद्र सरकार ने शनिवार को दिल्ली हाईकोर्ट में कहा कि जन गण मन और वंदे मातरम दोनों एक समान हैं। देश के प्रत्येक नागरिक को दोनों को एक जैसा सम्मान देना चाहिए। हाईकोर्ट ने जनहित याचिका पर गृह मंत्रालय, शिक्षा मंत्रालय, संस्कृति मंत्रालय, कानून और न्याय मंत्रालय और अन्य से राष्ट्रगान और राष्ट्रीय गीत को लेकर दायर याचिका पर जवाब मांगा था।
याचिकाकर्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय और भाजपा नेता ने कोर्ट में कहा कि देश में एक ही नेशनेलिटी है यानी भारतीय और ‘वंदे मातरम’ का सम्मान करना हर भारतीय का कर्तव्य है। देश को एकजुट रखने के लिए, जन गण मन और वंदे मातरम को बढ़ावा देने के लिए एक राष्ट्रीय नीति तैयार करना सरकार का कर्तव्य है।
पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (PIL) में राष्ट्रगान और राष्ट्रीय गीत के बीच समानता के लिए और राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम’ को भारत के राष्ट्रगान जैसा सम्मान और दर्जा देने के लिए दिशानिर्देश तैयार करने के लिए अपील की गई है। साथ ही केंद्र और राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देश देने की भी मांग की गई है कि सभी स्कूलों और शैक्षणिक संस्थानों में हर दिन ‘जन-गण-मन’ और ‘वंदे मातरम’ बजाया/गाया जाए। इसके अलावा 24 जनवरी 1950 को संविधान सभा की ओर से जारी गाइडलाइन को फ्रेम करने के लिए कहा गया है।
वंदे मातरम में राष्ट्र के चरित्र और शैली को दर्शाया गया
याचिका में कहा गया है कि जन गण मन में जिन भावनाओं व्यक्त किया गया है, वो को राज्य को ध्यान में रखते हुए हैं, जबकि वंदे मातरम में व्यक्त भावनाएं राष्ट्र के चरित्र और शैली को दर्शाती हैं। दोनों को एक जैसा सम्मान मिलना चाहिए। कभी-कभी, वंदे मातरम उन परिस्थितियों में गाया जाता है, जो जायज नहीं होती। हर भारतीय का कर्तव्य है कि जब वंदेमातरम बजाया/गाया जा रहा हो तो वो उसे सम्मान दिखाएं।
याचिका में कहा गया कि जब भारत को स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान ब्रिटिश शासन से आजादी मिली थी, तब वंदे मातरम पूरे देश का विचार और आदर्श वाक्य था। शुरू में बड़े शहरों में रैलियों में वंदे मातरम के नारे लगाए गए। इससे देशभक्ति पैदा हुई। अंग्रेज, डरे हुए थे। लोगों को भड़काने के संभावित खतरे के चलते उन्होंने सार्वजनिक स्थानों पर वंदे मातरम गाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। यही नहीं कई स्वतंत्रता कार्यकर्ताओं को इसे गाने को लेकर जेल में डाल दिया गया।