दरअसल, इंदौर नगर निगम सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) से निकलने ट्रीटेड वाटर को आय का जरिया बना रहा है। उधर, भोपाल नगर निगम नियमों के विरुद्ध इनका पानी तालाब में ही छोड़ रहा है।

भोपाल (राष्ट्र अज्कल्क प्रतिनिधि): कचरा प्रबंधन हो या जलसंरक्षण की कवायद। भोपाल व इंदौर नगर निगम में जमीन आसमान का अंतर दिखाई देता है।
पीएचई की गाइडलाइन में भी सीवेज ट्रीटेड वाटर को उद्यानों व धुलाई संबंधित कामों में उपयोग के लिए कहा गया है। दरअसल, केंद्र सरकार के वेटलैंड रूल 2017 के मुताबिक एसटीपी से ट्रीटेड पानी को किसी भी जल स्त्रोत (तालाब, नदी आदि) में छोड़ा नहीं जा सकता। कारण यह है कि सीवेज व गंदे पानी के रसायनों से उपचार के बाद भी उतना शुद्धिकरण नहीं हो पाता जो जल स्त्रोतों में छोड़ने लायक हो।
स्वच्छता सर्वेक्षण 2021 की गाइडलाइन में भी सीवेट ट्रीटेड वाटर के दोबारा उपयोग पर अंक निर्धारित किए गए हैं। शहर में करीब सात एसटीपी पर निगम हर माह 70 करोड़ रुपये खर्च करता है, लेकिन ट्रीटेड वाटर का उपयोग करने के बजाए तालाबों को बर्बाद किया जा रहा है।
पीएचई के एक्सपर्ट बताते हैं कि एसटीपी प्लांट पर 60 से 70 प्रतिशत तक ही सीवेज को शुद्ध किया जा सकता है। सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट पर सीवेज व गंदा पानी लाया जाता है। इन्हें वैज्ञानिक पद्धति व रसायनों के उपयोग के बाद कुछ हद तक शुद्ध कर दिया जाता है, लेकिन यह पानी पीने या शरीर के लिए उपयोगी नहीं होता।