राष्ट्र आजकल/ जीतेन्द्र सेन
मध्य प्रदेश: वैसे तो मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भ्रष्टाचारियों के खिलाफ सख्त एक्शन लेने के निर्देश दिए हैं लेकिन बैरसिया जनपद की ग्राम पंचायतों में सरकार द्वारा नियम के मुताबिक एक ही कार्यालय में 3 वर्ष से अधिक रहने वाले कर्मचारियों का तबादला किया जाता है। लेकिन इसके पीछे सरकार की मंशा भ्रष्टाचार को खत्म करने की रहतीं हैं।लेकिन लंबे समय तक एक ही जगह जमें कर्मचारी कही न कही भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने की संभावना बनी रहती है।
स्थानीय जनप्रतिनिधियों से अच्छे संबंध स्थापित कर सरकार द्वारा चलाई जा रही विभिन्न जनकल्याणकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार करते हैं। लेकिन राजधानी भोपाल जिले की बैरसिया जनपद क्षेत्र में पंचायत सचिव लंबे समय से जमें होने के चलते विभागीय अधिकारी कर्मचारी एवं नेताओं से गहरे तार जोड रखें है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार कुछ पंचायत सचिव तो ठेकेदार भी है। जो चारों ओर से चांदी काटने में लगे हुए हैं। इन सचिवों ने अपनी अधिकारियों में राजनीतिक धौंस जमा रखीं हैं। जिसके चलते अधिकांश पंचायतों में इनकी मशीनों से काम होता है।इन सचिवों ने राजनैतिक संरक्षण के चलते खूब दौलत कमा डाली बताया जाता है कि बैरसिया जनपद पंचायत की ग्राम पंचायतें बस नाम के लिए बनी है।
अधिकांश पंचायतों में तो ताले डले रहते हैं और सचिव जनपद कार्यालय में दिन भर चाय की चुस्की लेते दिखाई देते हैं। जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकांश हितग्राहियों को अपना काम कराने जनपद पंचायत बैरसिया के आस पास भटकना पड़ता है।
चंद सचिवों ने कर रखा है। जनपद की कुल ग्राम पंचायतों पर कब्जा
सूत्रों की मानें तो चंद सचिवों के हिसाब से ही तमाम पंचायतों के विकास का रोड़ मेप बनता है। किस्से मटेरियल लेना है। किसकी मशीनों से कार्य करना है वह तय करना उनके ही हाथ का काम है।
फर्जी बिल बाउचर से खरीदा जा रहा अधिकांश बिल्डिंग मटेरियल
बताया जाता है कि इन सचिवों ने अपने चाहेतो के नाम बगैर दुकानों के ही बिल्डिंग मटेरियल जैसे लोहा सीमेंट गिट्टी जेसीबी डंपर आदि का रजिस्ट्रेशन करवा रखा है। जबकि असलियत में कहीं कोई दुकाने मौजूद ही नहीं है।
बड़ी मात्रा में इन फर्जी दुकानदारों को निर्धारित दर से भी अधिक राशि का भुगतान धड़ल्ले से किया जा रहा है।
बड़े अधिकारियों की भी भूमिका संदिग्ध के घेरे में
हैरत की बात तो यह है कि इस पूरे खेल में है पीसीओ इंजीनियर से लेकर आला अधिकारी तक को सारी जानकारी रहती है।मगर थोड़े से लालच या राजनीतिक दबाव के चलते यह चुपी साधने पर मजबूर हैं।
अब सवाल यह उठता है कि कहीं ये सब सचिव अधिकारी सरकार विरोधी तो नहीं।