आज यानी 13 मई को सफेद घरों और मेहराबों के लिए मशहूर इटली के फसानो शहर में दुनिया के 7 सबसे ताकतवर देशों के नेता इकट्ठे हो रहे हैं। यहां अमीर देशों के सबसे बड़े संगठन ‘G7’ की बैठक शुरू हो रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी इस संगठन की मीटिंग में बतौर गेस्ट बुलाया गया है।
इटली की प्रधानमंत्री जियॉर्जिया मेलोनी ने चुनाव से पहले ही उन्हें इस समिट का न्योता भिजवा दिया था। हालांकि, ये पहली बार नहीं जब भारत को इस संगठन ने बतौर गेस्ट बुलाया हो। भारत सबसे पहले 2003 में इस समिट में हुआ था। इसके लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी फ्रांस गए थे।
भारत इस संगठन का हिस्सा नहीं है, फिर भी PM मोदी को क्यों बुलाया है, सबसे अमीर देशों के इस क्लब में क्या भारत भी शामिल हो सकता है… विदेश मामलों के एक्सपर्ट राजन कुमार से जानिए इन सभी सवालों के जवाब
सऊदी ने 300% महंगा कर दिया था तेल तो बना G7
1973 की बात है। मिडिल ईस्ट में इजराइल और अरब देशों में जंग छिड़ी थी। इस बीच अमेरिका के राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने इजराइल की मदद के लिए 18 हजार करोड़ रुपए देने की घोषणा कर दी। फिलिस्तीन का समर्थन करने वाले सऊदी अरब के ‘किंग फैसल’ अमेरिका के इस फैसले से खासे नाराज हुए। उन्होंने न सिर्फ अमेरिका बल्कि इजराइल का समर्थन करने वाले सभी पश्चिमी देशों को सबक सिखाने का प्लान बनाया।
किंग फैसल ने तेल उत्पादन करने वाले देशों के संगठन ओपेक की एक मीटिंग बुलाई। ये तय हुआ कि ये देश तेल उत्पादन में भारी कटौती करेंगे। नतीजा यह हुआ कि 1974 आते-आते दुनिया में तेल की किल्लत हो गई।
इसकी वजह से तेल की कीमतें 300% तक बढ़ गईं। इसका सबसे ज्यादा असर अमेरिका और उसके अमीर साथी देशों पर पड़ा। वहां इकोनॉमिक क्राइसिस आ गई। महंगाई आसमान छूने लगी।
सऊदी ने 300% महंगा कर दिया था तेल तो बना G7
1973 की बात है। मिडिल ईस्ट में इजराइल और अरब देशों में जंग छिड़ी थी। इस बीच अमेरिका के राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने इजराइल की मदद के लिए 18 हजार करोड़ रुपए देने की घोषणा कर दी। फिलिस्तीन का समर्थन करने वाले सऊदी अरब के ‘किंग फैसल’ अमेरिका के इस फैसले से खासे नाराज हुए। उन्होंने न सिर्फ अमेरिका बल्कि इजराइल का समर्थन करने वाले सभी पश्चिमी देशों को सबक सिखाने का प्लान बनाया।
किंग फैसल ने तेल उत्पादन करने वाले देशों के संगठन ओपेक की एक मीटिंग बुलाई। ये तय हुआ कि ये देश तेल उत्पादन में भारी कटौती करेंगे। नतीजा यह हुआ कि 1974 आते-आते दुनिया में तेल की किल्लत हो गई।
इसकी वजह से तेल की कीमतें 300% तक बढ़ गईं। इसका सबसे ज्यादा असर अमेरिका और उसके अमीर साथी देशों पर पड़ा। वहां इकोनॉमिक क्राइसिस आ गई। महंगाई आसमान छूने लगी।
अगले साल 1975 में तेल की बढ़ती कीमतों से परेशान दुनिया के 6 अमीर देश एक साथ आए। इन देशों ने अपने हितों को साधने के लिए एक संगठन बनाया। इसे ‘ग्रुप ऑफ सिक्स’ यानी G6 कहा गया। इनमें अमेरिका, जर्मनी, जापान, इटली, ब्रिटेन और फ्रांस शामिल थे। 1976 में कनाडा के मिलने से ये संगठन G7 बना।
सोवियत रूस के टुकड़े हुए तो उसे भी G7 में शामिल किया, फिर निकाला क्यों?
1975 में जब G7 बना तो शीत युद्ध का दौर था। एक तरफ सोवियत संघ और उसके समर्थन वाले देश थे। जिन्होंने मिलकर वॉरसा के नाम से एक ग्रुप बनाया था। इसे काउंटर करने के वामपंथ विरोधी पश्चिमी देश जैसे फ्रांस, इटली, वेस्ट जर्मनी (उस समय जर्मनी दो टुकड़ों में बंटा था) अमेरिका, ब्रिटेन, जापान और कनाडा एक मंच पर आए।