पुण्य देने वाले दो पर्व: आज ज्येष्ठ पूर्णिमा और कल मिथुन संक्रांति पर्व मनाया जाएगा, 15 जून से आषाढ़ मास की शुरुआत

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राष्ट्र आजकल प्रतिनिधि । इस हफ्ते लगातार दो बड़े पर्व रहेंगे। इनमें मंगलवार यानी आज ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा और बुधवार को मिथुन संक्रांति पर्व मनाया जाएगा। इसी दिन यानी 15 जून से आषाढ़ मास भी शुरू हो जाएगा। इस हिंदी महीने के पहले ही दिन सूर्य पर्व का होना शुभ संयोग है। पुराणों में कहा गया है कि पूर्णिमा और उसके अगले दिन संक्रांति पर्व होने से, दोनों दिन किया गया तीर्थ स्नान और दान अक्षय पुण्य देने वाला होता है। यानी इन दोनों दिन किए गए शुभ कामों का पुण्य कभी खत्म नहीं होता।

पुण्य देने वाले दो पर्व: ज्येष्ठ पूर्णिमा और मिथुन संक्रांति
पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र बताते हैं कि ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा पर पवित्र नदियों में स्नान-दान करने की परंपरा है। ऐसा नहीं कर सकते तो घर पर ही पानी में गंगाजल की कुछ बूंदे डालकर नहाने से तीर्थ स्नान का पुण्य मिलता है। वहीं, संक्रांति पर्व पर स्नान-दान के साथ ही पितरों के लिए श्राद्ध करने का विधान है। ऐसा करने से पितृ संतुष्ट हो जाते हैं। संक्रांति पर उगते हुए सूरज को अर्घ्य देनो और पूजा करने से आत्मविश्वास और सकारात्मकता बढ़ती है। सूर्य की रोशनी से मिलने वाले विटामिन डी से बीमारियां भी दूर होने लगती हैं।

ज्येष्ठ पूर्णिमा, वट सावित्री व्रत: 14 जून, मंगलवार
पुराणों के मुताबिक ज्येष्ठ महीने की पूर्णिमा को मन्वादि तिथि कहा गया है। यानी इस दिन किए गए तीर्थ स्नान और दान से मिलने वाला पुण्य कभी खत्म नहीं होता है। भविष्य और स्कंद पुराण के मुताबिक ज्येष्ठ महीने की पूर्णिमा पर वट सावित्री व्रत किया जाता है। इस दिन बरगद के पेड़ के नीचे भगवान शिव-पार्वती के बाद सत्यवान और सावित्री की पूजा की जाती है। साथ ही यमराज को भी प्रणाम किया जाता है। अपने पति की लंबी उम्र के लिए शादीशुदा महिलाएं ये व्रत करती हैं।

सूर्य के मिथुन राशि में आने से मिथुन संक्रांति पर्व मनाते हैं। इस दिन उगते हुए सूरज को अर्घ्य देने और पूजा करने की परंपरा है। इसी दिन तीर्थ और पवित्र नदियों में स्नान-दान और पितरों के लिए श्राद्ध भी किया जाता है। इस पर्व पर सूर्य को अर्घ्य देने के लिए तांबे के बर्तन का इस्तेमाल करना चाहिए। पानी में लाल चंदन और चावल मिलाकर सूर्य को जल चढ़ाना चाहिए। सूर्य को जल अर्पित करते वक्त उस पानी की धारा में से सूर्य को देखना चाहिए। अर्घ्य दिए गए जल को तांबे के ही बर्तन में लेना चाहिए और मदार के पेड़ में डाल देना चाहिए।

हिंदी कैलेंडर का चौथा महीना, आषाढ़ मास 15 जून से शुरू होगा और 13 जुलाई तक रहेगा। तिथि क्षय होने के कारण इस बार ये महीना 28 दिनों का ही रहेगा। आषाढ़ में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकलती है। इस महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी पर देवशयनी पर्व मनाया जाता है। यानी भगवान विष्णु चार महीनों की योगनिद्रा में चले जाते हैं और चातुर्मास की शुरुआत हो जाती है। जो कि कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी तक रहता है। इस महीने के आखिरी दिन गुरु पूर्णिमा पर्व मनाया जाता है। फिर भगवान शिव की पूजा के लिए पवित्र महीना सावन शुरू हो जाता है।

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