राष्ट्र आज कल सर्वे : देश के 80 % ग्रामीणों ने कहा, लॉकडाउन के दौरान नहीं मिला मनरेगा में काम

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राष्ट्र आज कल सर्वे : देश के 80 % ग्रामीणों ने कहा, लॉकडाउन के दौरान नहीं मिला मनरेगा में काम जब प्रवासी शहरों से गांवों की तरफ लौट कर आए तो मनरेगा को उनके रोजगार को प्रमुख विकल्प माना जा रहा था लेकिन राष्ट्र आज कल के सर्वे के मुताबिक यह बुरी तरह फेल रहा और सिर्फ 20% लोग ही इसमें रोजगार पा सकें।
कोरोना वायरस से देश में लगे पूर्ण लॉकडाउन के ख़त्म होने के बाद राष्ट्र आज कल ने 20 राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों के 179 जिलों में 25000 से ज्यादा ग्रामीणों के बीच सर्वे किया। राष्ट्र आज कल के इस सबसे बड़े ग्रामीण सर्वे में जो आंकड़े सामने आए हैं वह चौंकाने वाले हैं। राष्ट्र आज कल सर्वे के अनुसार देश के 80% प्रतिशत ग्रामीणों ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान उन्हें या उनके परिवार के किसी सदस्य को मनरेगा में काम नहीं मिला। जबकि सिर्फ 20 प्रतिशत ने कहा कि उन्हें मनरेगा में काम मिला। मनरेगा यानी महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के तहत देश के ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को साल में 100 दिन रोजगार देने का प्रावधान किया गया है। लॉकडाउन के बीच केंद्र सरकार ने 21 अप्रैल से मनरेगा में लोगों को रोजगार दिए जाने की छूट दी थी। इसके बावजूद कई इलाकों में लॉकडाउन के चार महीने बीतने के बाद भी मनरेगा का काम शुरू नहीं हो सका। कोरोना संकट के समय में देश में लॉकडाउन के दौरान केंद्र सरकार ने 17 मई को अपने 20 लाख करोड़ रुपए के आर्थिक पैकेज की आखिरी किश्त में मनरेगा में 40,000 करोड़ रुपए के अतिरिक्त बजट का ऐलान किया था। इससे पहले बजट में सरकार ने मनरेगा के तहत 61,500 करोड़ रुपए के बजट की घोषणा की थी। ऐसे में मनरेगा के लिए कुल एक लाख करोड़ रुपए से ज्यादा बजट का प्रावधान किया गया था। इसके बावजूद जमीनी स्तर पर ग्रामीणों को लॉकडाउन के दौरान मनरेगा में काम नहीं मिल सका। राष्ट्र आज कल सर्वे के देश के अलग-अलग राज्यों के आंकड़ों पर गौर करें तो लॉकडाउन के दौरान मनरेगा में काम मिलने को लेकर तस्वीर और साफ़ होती नजर आती है।

शायद यही वजह है कि शहरों से लौटी एक बड़ी आबादी अब जल्द से जल्द से वासप शहर लौट जाना चाहती है। राष्ट्र आज कल के इसी सर्वे के अनुसार जो प्रवासी मजदूर दूसरे राज्यों से अपने गांव लौटे हैं, फिर से वापस जाने वालों की संख्या भी उन्हीं की अधिक है। 70 फीसदी ऐसे प्रवासी फिर से दूसरे राज्यों के बड़े शहरों की तरफ जाना चाहते हैं। देश के पूर्वी राज्यों की बात करें तो बिहार, झारखण्ड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में क्रमश : 13, 09, 14 और 24 प्रतिशत ग्रामीणों को ही लॉकडाउन के दौरान मनरेगा में काम मिल सका, जबकि पश्चिमी राज्यों की बात करें तो महाराष्ट्र में सिर्फ आठ और गुजरात में सिर्फ दो प्रतिशत ग्रामीणों को मनरेगा में काम मिला। वहीं उत्तर भारत के राज्यों में शामिल हिमाचल प्रदेश, जम्मू एवं कश्मीर, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में यह आंकड़ा क्रमश : सात, चार, 25, सात, 14 और 19 प्रतिशत है यानी सिर्फ इतने प्रतिशत लोगों को ही लॉकडाउन के दौरान मनरेगा में काम मिला। सिर्फ छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और राजस्थान ऐसे राज्य रहे जहाँ 50 प्रतिशत से ऊपर यानी आधे से ज्यादा ग्रामीणों ने कहा कि उनको या उनके परिवार के किसी सदस्य को लॉकडाउन के दौरान मनरेगा में काम मिला है। राष्ट्र आज कल सर्वे में सामने आया कि राजस्थान में 59 प्रतिशत लोगों को काम मिला यानी काम की मांग कर रहे आधे से ज्यादा लोगों को मनरेगा में काम मिला। इसी तरह छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड में भी क्रमश : 70 और 65 प्रतिशत ग्रामीणों को लॉकडाउन के दौरान मनरेगा में काम मिल सका। राष्ट्र आज कल सर्वे में यह भी सामने आया कि देश में लगे लॉकडाउन के कारण इलाकों में बनाए गए रेड, ऑरेंज और ग्रीन जोन के कारण भी ग्रामीणों को मनरेगा में काम मिलना प्रभावित हुआ। उम्मीद के मुताबिक रेड जोन वाले जिलों में मनरेगा में कम लोगों को ही काम मिला। सर्वे के मुताबिक लॉकडाउन के दौरान ग्रीन जोन वाले जिलों में ग्रामीणों को मनरेगा में काम मिलने का प्रतिशत 24 रहा, जबकि ऑरेंज जोन के जिलों में 19 प्रतिशत लोगों को काम मिला। उम्मीद के मुताबिक रेड जोन के जिलों में स्थिति ज्यादा प्रभावित रही, इन जिलों में सिर्फ 13 प्रतिशत लोगों को ही मनरेगा में काम मिल सका। ऐसे में कुल 20 प्रतिशत लोगों को लॉकडाउन के दौरान मनरेगा में काम मिल सका यानी काम की मांग करने वाले पांच परिवारों में से सिर्फ एक परिवार को।

भारत के सबसे तेजी से बढ़ते मीडिया संस्थान राष्ट्र आज कल ने लॉकडाउन का ग्रामीण जीवन पर प्रभाव के लिए कराए गए इस राष्ट्रीय सर्वे को भोपाल स्थित सर्वोदय समाज कल्याण संस्था द्वारा पूरे भारत में कराया गया। देश के 20 राज्यों, 3 केंद्रीय शासित राज्यों के 179 जिलों में 30 मई से लेकर 16 जुलाई 2020 के बीच 25,371 लोगों के बीच ये सर्वे किया गया।

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