भोपाल राष्ट्र आजकल प्रतिनिधि | आंदोलन जीवी ही नहीं आन्दोलन सृष्टा भी होते हैं संसद में महामहिम राष्ट्रपति के अभिभाषण के प्रति कृतज्ञता उदबोधन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक नया वर्ग परिभाषित किया और इसके लिये एक नया शब्द भी दिया । एक वर्ग आँदोलन कर्मियों के लिये था । उन्होंने कहा कि देश में एक नया वर्ग सामने आया है और वह है आँदोलन जीवी । इन लोगों का धर्म कर्म और जीवन आँदोलन के लिये होता है ।जब प्रधानमंत्री जी कह रहे थे तब उनकी इस परिभाषा पर संसद में ठहाका लगा । पर प्रधानमंत्री जी ने जो कहा वह निराधार नहीं था और न कोई व्यंग वाक्य । वह तो देश का यथार्थ है । वाकई देश में कुछ चेहरे ऐसे हैं जो हर आँदोलन में दिखते हैं । और आँदोलन भी कौन सा जो सत्य और तथ्य पर नहीं बल्कि तार्किक भ्रम के आधार पर होता है ।प्रधानमंत्री जी ने जिन भी चेहरों और गतिविधियों को ध्यान में रखकर कहा उनके सहयोगी एक और वर्ग है । वह है आँदोलन सृष्टा का । यह वर्ग मीडिया प्रिय होता है । इस वर्ग की एक विशेषता होता है वह जानता है कि ऐसी पंच लाइन क्या होना चाहिए जो मीडिया में सुर्खी ले सके ।वे कोई विषय उठाते हैं जिसकी ओर ध्यान आकर्षित हो । यह ठीक उसी तरह है जैसे सब लोग चप्पल पैर में पहनकर चलतें हैं, लेकिन कोई चप्पल हाथ में लेकर चले तो सब उसकी ओर देखने लगते हैं । बिना पूछे ही वह तर्क देखा कि चप्पल शरीर लेकर बहुत चली है । अब शरीर भी चप्पल लेकर चले । जो लोग ऐसा हुँकारा लगाते हैं वे आँदोलन सृष्टा हैं । उनकी बातों में एक नये आँदोलन की सृजना होती है । वह केवल चाय काफी की टेबल या मीडिया कैमरे के सामने केवल बहस तक सीमित हो या सड़कों तक भी आये । आँदोलन जीवियों पर निर्भर करता है ।2014 में एक वाक्य आया कि भारत रहने लायक नहीं बचा । इस पर महीनों बहस चली या चलाई गयी । ऐसा कहने वालों में से कोई कहीं नहीं गया । सबने भारत को ही रहने लायक माना । सब यहीं रहे ।