राष्ट्र आजकल प्रतिनिधि, शहडोल। सर्दी का मौसम अब सबसे ज्यादा बच्चों और बुजुर्गों को बीमार कर रहा है। बच्चे निमाेनिया का शिकार हो रहे हैं और इसके चलते अस्पतालों में पीआइसीयू और बच्चा वार्ड के बेड पूरी तरह से फुल हैं। वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में फिर से एक बार दागना प्रथा शुरू हो गई है। प्रशासन की ढील के कारण इस कुप्रथा पर अंकुश नहीं लग पा रहा है। जिला मुख्यालय की पटासी गांव की तीन माह की बच्ची को 17 दिसंबर के दिन जिला अस्पताल में इलाज के लिए लाया गया था जिसकी निमोनिया के चलते 19 दिसंबर को मौत हो गई थी। इस तरह से देखा जाए तो निमोनिया से पीड़ित बच्चों की संख्या इस समय ज्यादा है। पीआइसीयू वार्ड में पचास प्रतिशत बच्चे इसी बीमारी के हैं। जिस बच्ची की मौत हुई थी उसके पेट में दागने के निशान भी नजर आ रहे थे। इस बच्ची की मौत का कारण चिकित्सकों ने निमोनिया बताया है। बताया गया है की बच्ची की तबीयत ज्यादा बिगड़ी तो उसे 17 दिसंबर को जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया था। 19 दिसंबर की रात उसकी मौत हुई है।
महिला बाल विकास विभाग की सुपरवाइजर शाहिना अंजुम का कहना है कि मृतिका रागिनी को उसकी दादी के द्वारा एक महीने पहले दागा गया था। अंजुम का कहना है कि अभी हाल ही में जब बच्ची को निमोनिया हुआ तब उसे जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जिसके बाद उसकी इलाज के दौरान मौत हुई है। बंधवा जिला उमरिया निवासी राजन बैगा के पेट में कई जगह दागने के निशान हैं। बच्चे को जिला चिकित्सालय के पीआईसीयू में भर्ती कराया गया है। हर्षलाल बैगा की पत्नी रामबाई बैगा अपने डेढ़ माह के बच्चे राजन को लेकर अपने मायके बकेली गई हुई थी। वहां बच्चे की पसली चलने व पेट में सूजन आने की वजह से बच्चे का इलाज कराने की बजाय रामबाई की मां गांव की ही दाई को बुला लाई। दाई ने गर्म चूड़ियों से बच्चे के पेट में 12 से अधिक बार दागा इसबच्चे का भी इलाज चल रहा है। मेडिकल कालेज की डाक्टर तुलसी सिंह धुर्वे का कहना है कि अगर बच्चा ज्यादा बीमार है तो उसे तत्काल डाक्टर के पास ले जाकर इलाज कराएं उसे दागने का पाप न करें। उन्होंने कहा कि इस समय पेट फूलना, नाक बहना और भी सर्दी के कई लक्षण बच्चों में देखे जाते हैं और इनका इलाज दवाओं से हो जाता है और बच्चे ठीक हो जाते हैं। इसलिए बहुत जरूरी यह है कि बीमार होने पर तुरंत डाक्टर के पास बच्चों को लेकर जाएं