राष्ट्र आजकल प्रतिनिधि । श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को स्कंद षष्ठी व्रत रखा जाएगा। यह व्रत 03 अगस्त दिन बुधवार को है। स्कंद षष्ठी के दिन भगवान शिव और माता पार्वती के बड़े पुत्र भगवान कार्तिकेय की पूजा विधि विधान से की जाती है। सावन के महीने में शिव परिवार की पूजा करना महत्वपूर्ण होता है क्योंकि यह माह शिव जी का प्रिय माह है स्कंद षष्ठी भगवान कार्तिकेय को समर्पित महत्वपूर्ण हिंदू त्योहारों में से एक है। स्कंद षष्ठी को कांडा षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है। भगवान कार्तिकेय का एक नाम स्कंद कुमार भी है। तमिल हिंदुओं के बीच लोकप्रिय हिंदू देवता भगवान स्कंद कुमार हैं। वह भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र हैं और उन्हें भगवान गणेश का छोटा भाई माना जाता है। लेकिन उत्तरी भारत में, स्कंद को भगवान गणेश के बड़े भाई के रूप में पूजा जाता है। भगवान स्कंद के अन्य नाम मुरुगन, कार्तिकेयन और सुब्रमण्य हैं। स्कंद षष्ठी को कांडा षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है। आइए जानते हैं सावन स्कन्द षष्ठी की तिथि, मुहूर्त, महत्व और पूजा विधि। श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि का प्रारंभ: 03 अगस्त, प्रात: 05:41 मिनट पर श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि समाप्त: 04 अगस्त, प्रात: 05: 40 मिनट पर उदयातिथि की मान्यता के अनुसार, सावन स्कंद षष्ठी व्रत 03 अगस्त को रखा जाएगा। स्कंद षष्ठी व्रत का पालन करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है और संतान से संबंधित समस्याओं का समाधान होता है। दक्षिण भारत के इस लोकप्रिय व्रत को संतान के उन्नति और सुख के लिए रखा जाता है। इस व्रत का पालन करने वाले भक्तों को लोभ, क्रोध, अहंकार और मोह से मुक्ति मिल जाती है। स्कंद षष्ठी व्रत की कथा के अनुसार, च्यवन ऋषि के आंखों की रोशनी चली गई थी, तो उन्होंने यह व्रत रखा था और स्कंद कुमार की पूजा की थी। व्रत के पुण्य प्रभाव से उनके आंखों की रोशनी वापस आ गई। दूसरी कथा में बताया गया है