राष्ट्र आजकल। जानिए किस तरह से थायराइड हार्मोन का लेवल प्रेग्नेंसी को करता है प्रभावित, शिशु की सेहत भी हो सकती है खराब, तितली के आकार की गर्दन के सामने एक ग्रंथि होती है। इस ग्रंथि से टी3 और टी4 हार्मोन निकलता है जो मेटाबोलिज्म को नियंत्रित करता है। इससे हमारा शरीर उर्जा का उपयोग करता है। थायराइड डिसऑर्डर एक कॉमन समस्या है और भारत में जवान लोगों में 10 में से 1 लोगों को यह समस्या होने का अनुमान है। ज्यादातर लोग हाइपोथायरायडिज्म से पीड़ित होते हैं। हाइपोथायरायडिज्म एक ऐसी मेडिकल कंडीशन होती है जिसमे थायराइड ग्रंथि शरीर की जरुरत के हिसाब से पर्याप्त मात्रा में हार्मोन का उत्पादन नहीं करती है। एक और मेडिकल कंडीशन होती है जिसमे यह ग्रंथि ओवरएक्टिव हो जाती है शरीर की जरुरत के हिसाब से ज्यादा हार्मोन उत्पादित करने लगती है। इस कंडीशन को हायपरथायरायडिज्म कहते हैं। 18 से 35 साल की प्रजनन उम्र वाली महिलाए पुरुषों के मुकाबलें थायराइड से ज्यादा पीड़ित होती हैं। अगर गर्भवती महिला थायराइड से पीड़ित होती है तो बच्चा पैदा होने पर कई समस्याएं पैदा हो सकती है। माँ और बच्चे की सेहत प्रसव के बाद खराब हो सकती है। टीएसएच हार्मोन का मां और शिशु पर प्रभाव फेडरेशन ऑफ ऑब्स्टेट्रिक एंड गाइनोकोलॉजिकल सोसाइटीज़ ऑफ़ इंडिया और अन्य एक्सपर्ट ग्रुप के अनुसार ट्राइमेस्टर-विशिष्ट थायराइड उत्तेजक हार्मोन कटऑफ गर्भावस्था की पहली तिमाही के लिए 2.5 एमआईयू / लीटर होना चाहिए और दूसरे और तीसरे तिमाही के लिए 3.0 एमआईयू / लीटर हॉर्मोन उत्पादन होना चाहिय। हार्मोन मस्तिष्क और भ्रूण के तंत्रिका तंत्र के विकास के लिए महत्वपूर्ण होता है।
पहली तिमाही के दौरान थायराइड हार्मोन की आपूर्ति मां पर निर्भर करती है, यह हार्मोन नाल के माध्यम से बच्चे में आता है। टीएसएच हार्मोन कम या ज्यादा होने पर माँ और बच्चे दोनों को नुकसान पहुँच सकता है। थायरॉयड का मैनेजमेंट प्रसवपूर्व देखभाल का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। गर्भावस्था में हाइपोथायरायडिज्म का प्रभाव हालांकि गर्भावस्था के दौरान हाइपोथायरायडिज्म होना बहुत सामान्य नहीं है। गर्भवती महिला में आयोडीन की कमी होने से थायराइड कम सक्रिय हो सकता है। हाइपोथायरायडिज्म का लक्षणों में अनियमित समय पर पीरियड्स का आना, थकान, वजन बढ़ना आदि होता है। इस डिसऑर्डर को नज़रअंदाज करने की दर बहुत ज्यादा होती है। हाशिमोटो रोग या हाशिमोटो थायराइडाइटिस से पीड़ित महिलाओं में यह ग्रंथि कम सक्रिय हो जाती है इसलिए यह कम हार्मोन का उत्पादन करती है, और वे हाइपोथायरायडिज्म का अनुभव कर सकती है। अगर महिला 30 वर्ष या इससे ज्यादा हो तो इस तरह के खतरे बढ़ जाते हैं – पहले कोई थायराइड डिसऑर्डर या ऑटोइम्यून बीमारी परिवार में किसी को होने पर – टाइप 1 डायबिटीज या अन्य ऑटोइम्यून बीमारी होने पर – बांझपन या अपरिपक्व प्रसव होने की हिस्ट्री होने पर – गर्दन या सिर में रेडिएशन से इलाज कराने पर – गण्डमाला या एक बढ़ी हुई थायरॉयड ग्रंथि होने पर – थायरॉयड हार्मोन की दवा लेवोथायरोक्सिन से इलाज कराने पर गर्भावस्था में हायपरथायरायडिज्म का प्रभाव अनियंत्रित और ओवरएक्टिव थायराइड ग्रंथि होने पर गर्भावस्था पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। इससे हाइपरटेंशन, प्रसव पूर्व जन्म, जन्म के समय बच्चे का कम वजन हो सकता है। हायपरथायरायडिज्म के सबसे गंभीर रूप को ‘थायराइड स्टॉर्म’ कहा जाता है। यह होने पर माँ को डीहाइड्रेशन, डायरिया, बहुत ज्यादा बुखार तथा हार्ट रेट तेज और अनियमित हो सकती है। अगर इसका इलाज न किया गया तो इससे शॉक लग सकता है और मौत भी हो सकती है। हालांकि ऐसा बहुत कम होता है, इससे केवल 1% जन्मे बच्चे और माँ इससे प्रभावित होते हैं। हायपरथायरायडिज्म से पीड़ित माँ नवजात शिशु ग्रेव्स रोग के साथ -साथ इम्यून सिस्टम डिसऑर्डर वाले बच्चे को जन्म दे सकती है। एक एंडोक्रिनोलॉजिस्ट से कंसल्टेशन कराये6 of 6 एक एंडोक्रिनोलॉजिस्ट से कंसल्टेशन करायेकम और हाई लेवल होने से गर्भपात, एनीमिया, प्रीक्लेम्पसिया, प्लेसेंटल एब्रप्शन और प्रसव के बाैसी कॉम्प्लिकेशन होने का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए अगर आपको पता चलता है कि गर्भवती महिला में थायरॉयड का लेवल असंतुलित है तो सुनिश्चित करें कि आप महिला किसी स्त्री रोग विशेषज्ञ के साथ-साथ एक एंडोक्रिनोलॉजिस्ट से कंसल्टेशन कराये।
यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि महिला को 150 से 250 एमसीजी पोटेशियम आयोडाइड या आयोडेट जैसे विटामिन को प्रसव से पहले रोज मिले। थायराइड की दवा और जन्म के पूर्व के विटामिन या कैल्शियम और आयरन युक्त सप्लीमेंट थायराइड हार्मोन के अवशोषण में हस्तक्षेप कर सकते हैं। एक ही समय के दौरान इन्हें न खाएं और जब भी खाएं तो इनके बीच से कम से कम 2 या 3 घंटे का अंतराल रखें। ब्रेस्टफीडिंग कराने वाली महिलाओं को हर दिन आयोडीन का डोज बढ़ाकर 250 एमसीजी करना चाहिए, क्योंकि उनके स्तन का दूध शिशुओं को आयोडीन प्रदान करता है और उनकी आयोडीन की जरुरत को पूरा करता है।