राष्ट्र आजकल प्रतिनिधि | दुनियाभर में पिछले करीब दो साल से जारी कोरोना महामारी के चलते लगे लॉकडाउन ने लंबे समय तक लोगों को घरों में रहने को मजबूर कर दिया। एहतियाती तौर कॉलेज और कार्यालयों के काम घर से होने शुरू हुए। वर्क फ्रॉम होम के इस कल्चर ने एक ओर जहां लोगों को कोरोना महामारी से सुरक्षित रहने में भूमिका निभाई वहीं इसके कारण शारीरिक निष्क्रियता, अस्वास्थ्यकर आहार, मेटाबॉलिज्म संबंधी विकार और मोटापे का खतरा बढ़ गया। स्वास्थ्य विशेषज्ञ वर्क फ्रॉम होम के दौरान जीवनशैली में आए बदलाव को सेहत के लिए काफी गंभीर मानते हैं।
इसी से संबंधित हाल ही में हुए एक अध्ययन से पता चलता है कि लॉकडाउन के कारण लोगों में बढ़ी शारीरिक निष्क्रियता मौत का कारण बन सकती है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक शारीरिक निष्क्रियता के कारण मस्तिष्क में रक्त और ऑक्सीजन की आपूर्ति बाधित हो जाती है, जो स्ट्रोक का कारण बन सकती है। लोगों के लिए यह स्थिति जानलेवा हो सकती है।
अध्ययनकर्ताओं के अनुसार शारीरिक निष्क्रियता या सेडेंट्री लाइफस्टाइल के कारण शरीर में होने वाला रक्त प्रवाह, लिपिड मेटाबॉलिज्म और ग्लूकोज का स्तर प्रभावित होने के साथ और सूजन की समस्या बढ़ जाती है। समय के साथ ऐसी स्थितियां रक्त वाहिकाओं पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती हैं जिससे दिल का दौरा पड़ने और स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है। इन दोनों ही स्थितियों को सामान्यत: जानलेवा माना जाती है।