राष्ट्र आजकल प्रतिनिधि I ब्रहस्पति ग्रह के चांद यूरोपा पर जीवन की संभावना की तलाश करने के लिए नासा ने सोमवार को यूरोपा क्लिपर नाम का स्पेसक्राफ्ट लॉन्च किया। स्पेसक्राफ्ट को फ्लोरिडा के केनेडी स्पेस सेंटर से इलॉन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स के फाल्कन हेवी रॉकेट के जरिए लॉन्च किया गया।
यह मिशन 6 साल का होगा और इस दौरान स्पेसक्राफ्ट करीब 3 अरब किलोमीटर का रास्ता तय करेगा। यूरोपा क्लिपर 11 अप्रैल 2030 में ब्रहस्पति की कक्षा में दाखिल होगा। इसके बाद अगले 4 साल में यह 49 बार यूरोपा चांद के करीब से गुजरेगा।
न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, वैज्ञानिकों को लगता है कि बृहस्पति के चांद की बर्फीली सतह के नीचे पानी के महासागर हैं, जो इस उपग्रह को रहने लायक बना सकते हैं। यूरोपा क्लिपर स्पेसक्राफ्ट पर कई सोलर पैनल लगे हैं।
नासा ने मिशन पर 43 हजार करोड़ खर्च किए यह किसी दूसरे ग्रह की जांच के लिए नासा की तरफ से बनाया गया अब तक का सबसे बड़ा स्पेसक्राफ्ट है। इसका साइज एक बास्केटबॉल कोर्ट से भी बड़ा है। इस मिशन पर नासा ने 43 हजार करोड़ रुपए खर्च किए हैं।
स्पेसक्राफ्ट यूरोपा चांद की जांच के लिए अपने साथ 9 उपकरण लेकर गया है। इनमें कैमरा, स्पेक्टोमीटर, मैगनेटोमीटर और रडार शामिल हैं। इनके जरिए वैज्ञानिक ब्रहस्पति के चांद पर मौजूद महासागरों की गहराई का पता लगाएंगे। इसके अलावा वे यूरोपा की सतह पर जीवन के लिए जरूरी दूसरी चीजों की मौजूदगी भी तलाशेंगे। साथ ही वे चांद की सतह पर मैगनेटिक फील्ड को भी चेक करेंगे।
28 साल पहले यूरोपा पर खारे पानी होने के संकेत मिले 1979 में वॉयजर 2 मिशन ब्रहस्पति के करीब से गुजरा था। तब उसने यूरोपा चांद की कुछ तस्वीरें ली थीं। इनमें चांद पर कुछ गड्ढे और क्रेटर दिखे थे, जिसे जियोलॉजिकल प्रोसेस की संभावना के तौर पर देखा गया था।
1996 में नासा के गैलीलियो स्पेसक्राफ्ट ने यूरोपा की मैगनेटिक फील्ड की जांच की थी। तब यूरोपा पर खारे पानी होने के संकेत मिले थे। अमेरिका के प्लैनेटरी साइंस इंस्टिट्यूट ने वैज्ञानिक टॉम मैक्कॉर्ड ने बताया कि यूरोपा क्लिपर मिशन की प्लानिंग 1995 में शुरू की गई थी।