दाल-रोटी एक बार फिर महंगी: 35.20 रुपए से बढ़कर 37.40 रुपए हुआ आटा

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राष्ट्र आजकल प्रतिनिधि। दाल-रोटी एक बार फिर महंगी होने लगी है। बीते एक महीने में रिटेल बाजार में गेहूं व दाल के भाव 5% और 4% तक बढ़ गए हैं। पाम ऑयल को छोड़कर सभी प्रमुख खाद्य तेलों की कीमतों में भी इस दौरान मामूली वृद्धि हुई है। दूसरी तरफ आलू, प्याज और टमाटर की औसत रिटेल कीमतों में गिरावट आई है।

गेहूं का औसत रिटेल भाव 31.90 रुपए प्रति किलो
केंद्रीय खाद्य और उपभोक्ता मामलों के मंत्री पीयूष गोयल ने गुरुवार को एक सवाल के लिखित जवाब में कहा, ‘देश में गेहूं और दाल जैसी जरूरी वस्तुओं की औसत रिटेल कीमतों में हाल के महीनों में कोई तेज और लगातार वृद्धि नहीं हुई है।’ गोयल के मुताबिक, 6 दिसंबर को गेहूं का औसत रिटेल भाव एक महीने पहले के 30.50 रुपए की तुलना में 31.90 रुपए प्रति किलो हो गया।

35.20 रुपए से बढ़कर 37.40 रुपए हुआ आटा
सरकार ने आटे की औसत रिटेल कीमत की जानकारी नहीं दी। लेकिन सरकार की मूल्य निगरानी प्रणाली के ब्योरे से पता चलता है कि आटे की कीमत एक महीने पहले 35.20 रुपए की तुलना में 6% बढ़कर 37.40 रुपए प्रति किलो हो गई है। दालों में, चना दाल की कीमत पिछले एक महीने में 2% बढ़ी है। ठीक एक महीने पहले चना दाल का औसत भाव 110.90 रुपए प्रति किलो था। मंगलवार को यह 112.80 रुपए प्रति किलो भाव पर बिकी। अन्य दालों के भाव में लगभग स्थिरता देखी गई।

देश के ज्यादातर इलाकों में गेहूं के भाव अभी MSP से 30-40 फीसदी ऊपर है। व्यापारियों का कहना है कि मौजूदा भाव करीब-करीब रिकॉर्ड ऊंचे स्तर पर बना हुआ है। बीते 4 महीनों में कीमतें धीरे-धीरे बढ़ते हुए रिटेल में 32 रुपए किलो तक पहुंच गए हैं।

महंगाई के बढ़ने का सीधा-सीधा मतलब आपके कमाए पैसों का मूल्य कम होना है। उदाहरण के लिए, यदि महंगाई दर 7% है, तो आपके कमाए 100 रुपए का मूल्य 93 रुपए होगा। ऐसे कई फैक्टर हैं जो किसी इकोनॉमी में कीमतों या महंगाई को बढ़ा सकते हैं। आमतौर पर, महंगाई प्रोडक्शन कॉस्ट बढ़ने, प्रोडक्ट और सर्विसेज की डिमांड में तेजी या सप्लाई में कमी के कारण होती है। महंगाई बढ़ने के 6 बड़े कारण होते हैं:

• डिमांड पुल इन्फ्लेशन तब होती है जब कुछ प्रोडक्ट और सर्विसेज की डिमांड अचानक तेजी से बढ़ जाती है।

• कॉस्ट-पुश इन्फ्लेशन तब होती है जब मटेरियल कॉस्ट बढ़ती है। इसे कंज्यूमर को पास कर दिया जाता है।

• यदि मनी सप्लाई प्रोडक्शन की दर से ज्यादा तेजी से बढ़ती है, तो इसका परिणाम महंगाई हो सकता है।

• कुछ इकोनॉमिस्ट सैलरी में तेज बढ़ोतरी को भी महंगाई का कारण मानते हैं। इससे प्रोडक्शन कॉस्ट बढ़ती है।

• सरकार की पॉलिसी से भी कॉस्ट पुश या डिमांड-पुल इन्फ्लेशन हो सकती है। इसलिए सही पॉलिसी जरूरी है।

• कई देश इंपोर्ट पर ज्यादा निर्भर होते हैं वहां डॉलर के मुकाबले करेंसी का कमजोर होना महंगाई का कारण बनता है।

भारत में महंगाई बढ़ने को दो मुख्य कारण हैं। खाने के तेल की कीमतों में भारी बढ़ोतरी और साथ ही ईंधन की कीमतों में बढ़ेतरी। दालों की कीमतों के बढ़ने से भी इंडियन फूड बास्केट तेजी से बढ़ा है। केंद्र सरकार ने इन दोनों के ही दामों में कमी लाने के लिए कदम उठाए हैं। पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज ड्यूटी घटाने के साथ कच्चे सूरजमुखी तेल के ड्यूटी फ्री इंपोर्ट की अनुमति दी है।

सरकार के इन कदमों से महंगाई से कुछ हद तक राहत मिली है, लेकिन यह पूरी तरह से कम नहीं हो पाई है। मैन्चुफैक्चरिंग और सप्लाई चेन में दिक्कत महंगाई को बढ़ा रहे हैं। कोरोना महामारी के लॉकडाउन में मैन्युफैक्चरिंग और सप्लाई चेन दोनों प्रभावित हुई थी। इससे माल कम हो गया है और इसलिए उन सामानों की कीमतों में इजाफा हुआ है जो बाजारों तक कम पहुंच रहे हैं। रूस-यूक्रेन जंग ने भी इसमें बड़ा रोल निभाया है।

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